Thursday, May 1, 2014

..... भगवान परशुराम जयन्ती पर एक रहस्यमय प्रसंग ...

..... भगवान परशुराम जयन्ती पर एक रहस्यमय प्रसंग ...
..... अक्सर लोग प्रश्न उठाते हैं कि ब्राह्मण होकर भी भगवान् परशुराम में क्षत्रियोचित गुण का आधिक्य क्यों था ?
..... एक क्षत्रिय राजा थे , उनके केवल एक पुत्री संतान थी . उनके राज्य में एक ' ऋचीक ' नाम के ऋषि रहते थे . राजा ने ऋषि से निवेदन करके अपनी पुत्री का विवाह उनसे कर दिया . विवाह के पश्चात राजा की पत्नी ने अपनी पुत्री ( ऋषि पत्नी ) से कहा कि हे ! पुत्री जब आपके पति अपने लिए पुत्र की कामना से यज्ञ करें तो इनसे निवेदन करके मेरे लिए भी एक पुत्र का वरदान मांग लेना , पुत्री ने कहा ठीक है .
.....कालान्तर में जब ऋषि ने पुत्र की कामना से यज्ञ किया तो इनकी पत्नी ने अपनी माता का सन्देश उन्हें दिया .
..... ऋषि ने कहा एवमस्तु . तत्पश्चात ऋषि ने दो हांडी में खीर पकाई , और एक हांडी अपनी पत्नी को दी और कहा कि यह खीर तुम बरगद के वृक्ष के नीचे जाकर खा लेना , और यह दूसरी हांडी की खीर अपनी माता को दे देना और कहना कि वे पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ कर यह खीर खा लें .
..... ऋषि पत्नी ने विचार किया कि , माता के घर चलकर दोनों लोग खीर खायेंगे .
..... जब वह माता के घर पहुँची तो माता ने कहा कि पुत्री तुम्हारे तो और भी पुत्र हो जायेंगे , मेरे केवल यही एक होगा , और तुम्हारे पति ने अपने लिए श्रेष्ठ पुत्र की कामना से खीर बनायी होगी , अत: हम लोग खीर आपस में बदल लेते हैं .
..... ऋषि पत्नी ने यह बात मान ली , और खीर की हांडी बदल कर ऋषि पत्नी ने माता वाली खीर पीपल के नीचे , और माता ने ऋषि पत्नी वाली खीर बरगद के नीचे खाली .
.....कालान्तर में दोनों गर्भवती हुई , ऋषि ने जब अपनी पत्नी का मुख और शरीर देखा तो कहा कि कुछ बदलाव है और उन्होंने खीर वाली बात पूछी , तब ऋषि पत्नी ने सब सही बता दिया . तब ऋषि बोले यह तो बड़ा अनर्थ हो गया , क्योंकि मैंने आपकी माता के लिए क्षत्रिय गुण-धर्म से विभूषित खीर बनायी थी और आपके लिए ब्राह्मण गुण-धर्म से विभूषित , ऐसा सुन कर ऋषि पत्नी दुखी हो गयी , और बोली इस बात से मुक्ति कैसे मिले .
.....तब ऋषि ने कहा कि अब मैं कुछ नहीं कर सकता , तब ऋषि पत्नी ने विलाप शुरू कर दिया .
.....अंत में ऋषि ने कहा कि , जो मैंने अपने तपोबल से खीर बनायी थी उसका असर तो समाप्त नहीं होगा , लेकिन मैं ऐसा कर सकता हूँ , इस पीढी में तो हमारे यहाँ ब्राह्मण गुण-धर्म से विभूषित पुत्र होगा , और आपकी माता के यहाँ क्षत्रिय गुण-धर्म से विभूषित पुत्र होगा , किन्तु अगली पीढी में वह गुण-धर्म बदल जाएगा और अपने यहाँ जो हमारा पौत्र होगा वह क्षत्रिय गुण -धर्म वाला , और आपकी माता के यहाँ उनका पौत्र ब्राह्मण गुण-धर्म वाला होगा ...ऋषि पत्नी ने कहा ठीक है ऐसा मुझे स्वीकार है .
..... इसी के फलस्वरूप राजा के यहाँ ' गाधि ' नामक पुत्र हुए , और ऋषि के यहाँ ' जमदग्नि ' हुए और अगली पीढी में गाधि के पुत्र 'विश्वामित्र ' हुए जो ब्रह्म बल की प्राप्ति के लिए सदैव प्रयत्नशील रहे , और ब्राह्मणोंचित गुण धर्म वाले थे ...और ऋषि पुत्र जमदग्नि के यहाँ परशुराम जी का जन्म हुआ जो क्षत्रिय गुण-धर्म वाले थे....
...... यह एक पौराणिक कथानक है , याद आ गया, सो आज श्री परशुराम जयन्ती के शुभ अवसर पर लिख दिया....
..... जय परशुराम...