Tuesday, August 27, 2013

एक बार प्रेम से बोलिए आनंदकंद भगवान श्री कृष्ण चंद की जय

......... एक बार प्रेम से बोलिए आनंदकंद भगवान श्री कृष्ण चंद की जय.......
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..... हाथी घोड़ा पालकी , जय कन्हैया लाल की |
..... नन्द के घर आनंद भयो, जय बोलो गोपाल की ||
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.....आओ चली मथुरा नगरिया , जन्मे हैं कृष्ण संवरिया ||
..... अष्टमी तिथि रही , बुध शुभ दिनवा | रोहिणी नखत लागे भादों का महिनवा ||
..... रिमझिम बरसे बदरिया , जन्मे हैं कृष्ण संवरिया ||
..... पहारू सब सोवन लागे, खुलिगे किंवरिया | खुलि गइली बेडी और खुली हथकड़ियाँ ||
..... भइली भयावन अंधेरिया , जन्मे हैं कृष्ण संवरिया ||
..... लइके वसुदेव चले गोकुला नगरिया | जमुना उमड़ रही , हहरे लहरिया ||
..... पांवन परसे घटि गए लहरिया , जन्मे हैं कृष्ण संवरिया ||
..... घटि गईले जमुना जी , पहुंचे नगरिया | यशुदा के पसवा में रखले कन्हैया ||
..... कन्या लईके पकडे डगरिया , जन्मे हैं कृष्ण संवरिया ||
..... नन्द भवन जब रोइले कन्हैया | कहाँ कहाँ शब्द सुने यशुदा मैया ||
.... लगि गइले भीड़ दुवरिया , जन्मे हैं कृष्ण संवरिया ||
..... दर्शनवा के सुनि नर मुनि अउले | हरि जी के भक्त सब मंगल गउले ||
..... काहे नहीं लेहला खबरिया जन्मे हैं कृष्ण संवरिया ||
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..... नोट - सौभाग्यवश , इस वर्ष जन्माष्टमी के व्रतपर्व पर, मास ( भाद्रपद ) तिथि (अष्टमी ) दिन ( बुधवार ) नक्षत्र ( रोहिणी ) का अद्भुत संयोग है ... सोने में सुहागा यह है कि काशी के समयानुसार आज रात्रि को १० बजकर १९ मिनट से लेकर १२ बजकर १६ मिनट तक ' वृष' लग्न का समावेश रहेगा , उल्लेखनीय है कि कृष्ण जी का जन्म रात्री १२ बजे ' वृष ' लग्न में ही हुआ था ...अत: यह पावन त्यौहार अति शुभ व महत्वपूर्ण हो गया है .....
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..... मेरे आत्मीय बंधुओं ! आप सभी को मेरी ओर से ' श्री कृष्ण जन्माष्टमी ' की शुभ कामनाएँ ...योगीश्वर श्री कृष्ण आप सबकी मनोकामनाओं को पूर्ण करें , आपका जीवन सपरिवार उल्लासमय रहे , प्रभु की कृपा आप पर सदैव बरसती रहे ....
......... एक बार प्रेम से बोलिए वृन्दावन बिहारी लाल  की जय.......

Saturday, August 24, 2013

..... गुलाब की मौन भाषा .....

..... गुलाब की मौन भाषा  .....
..... मेरे आत्मीय मित्रों ! यथोचित अभिवादन ....
..... ' गुलाब ' को देख कर सबका मन प्रसन्नता से प्रफुल्लित हो जाता है , क्या आप जानते हैं ऐसा क्यूँ होता है. वैज्ञानिक शोध के अनुसार गुलाब में यह विशेष खुशबू एक तत्व ' फिनाइल थाइलेमाइन ' के कारण होती है . जो की हमारे शरीर को सुखद अहसास करने वाले हार्मोन ' बीटा एंडोर्फिन ' को सकारात्मक रूप से प्रभावित करती है ...इसीलिये कहा जाता है कि , जब मन उदास हो गुलाब सूंघे . गुलाब ' रोजियेसी ' प्रजाति का सदस्य है . वनस्पति विज्ञान में इसे ' रोजा डेमासेना ' के नाम से जाना जाता है .....
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..... ' गुलाब ' की अपनी एक मौन भाषा भी है , जो इसके रंग , रूप से व्यक्त होती है ...
..... १- लाल अधखिला गुलाब कहता है ...मैं तुमसे प्यार करता हूँ...
..... २- सफ़ेद गुलाब कहता है ... हमारा प्यार पवित्र है ...
..... ३- लाल पूरा खिला गुलाब कहता है ... आप बहुत खूबसूरत हैं...
..... ४- लाल और सफ़ेद गुलाब एकसाथ कहता है ...हम एक है ...एकता का प्रतीक ...
..... ५- एक पूरे खिले गुलाब के साथ दो कलियाँ कहती हैं...हम सुरक्षा देंगे ...
..... ६- सफ़ेद गुलाब की बंद कली कहती है ...अभी आप बहुत छोटे हैं प्यार करने के लिए ...
..... ७- पीला गुलाब संशय व्यक्त करता है .... मैं तुम्हें प्यार करता हूँ , पर तुम्हारे दिल में मेरे लिया क्या है , मैं नहीं समझ पा रहा ....
..... ८- अगर गुलाब की टहनी में काँटों के अलावा एक भी पत्ती न हो तो आशय है ...यहाँ कुछ भी नहीं है , न डर न आशा , तुम्हारी ख़ूबसूरती और मधुरता में मेरी चेतना खो गयी है .....
..... ९- नारंगी गुलाब कहता है ... मेरा प्यार तुम्हारे लिए अनंत है ...
..... १०- कांटे से भरी लम्बी टहनी पर इठलाती बंद कली ऐलान करती है ...यहाँ डर किसका है ...
..... ११- चार पत्तियों से जुडा गुलाब कहता है ...बेस्ट आफ लक ...

Thursday, August 22, 2013

......... जय श्री योगीश्वर कृष्ण .............


 ......... योग बुद्धि की प्रशंसा .........
......... जय श्री योगीश्वर कृष्ण .............
..... बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते |
..... तस्माद्योगाय युज्यस्व योग: कर्मसु कौशलं|| ..... गीता अध्याय २| श्लोक ५० ||
..... जो बुद्धियोग चित्त की समता से कर्म करता है , वह अपने पुण्य - पाप दोनों को इसी लोक में छोड़ देता है . इसलिए तू योग की चेष्टा कर ; क्योंकि कामों के बीच में ' योग' अत्यंत बलवान है |
..... जो सिद्धि-असिद्धि में समभाव रखकर कर्म करता है , उसका चित्त समत्व बुद्धि से शुद्ध  हो जाता है . चित्त के शुद्ध होने पर ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है . ज्ञान से पुण्य-पाप इसी दुनिया में छूट जाते हैं . तात्पर्य यह है कि , चित्त की समता वाला अपने योगबल से पुण्य-पाप दोनों से इसी लोक में पीछा छुडा लेता है . कर्मों के बीच में योग ही करामाती है . क्योंकि जो कर्म बंधन-स्वरुप है , वही जब चित्त की समता -योगबुद्धि से किये जाते हैं, तब वह बंधन छुडाने वाले हो जाते हैं. यानी जो कर्म मनुष्य को संसार-बंधन में फंसाते हैं , वे ही कर्मयोग के बल से , बलवान होकर , मनुष्य के हृदय में ज्ञान जागृत करके , संसार-बंधन से छुडा देते हैं ...इसलिए अर्जुन तू योगी हो ........  
..... खुलासा यह है कि सुख -दुःख और सब प्रकार की लाभ हानि को एक समान समझने वाला मनुष्य , क्या इस लोक और क्या परलोक में , कभी पाप-पुण्य का भागी नहीं होता ; वह जिस प्रकार अच्छे कर्म कर पुण्य की आशा छोड़ देता है ; उसी प्रकार यदि उसके द्वारा कोई बुरा कार्य हो जाय , तो उसका पाप उसे नहीं लगता . इसलिए तुम सुख -दुःख का विचार छोड़ कर , दोनों को एक सा समझो . सुख-दुःख , लाभ-हानि , जय -पराजय आदि को सामान समझना ही 'योग' है . जो इनको समान समझता हुआ कर्म करता है , उसके किये हुए पुण्य-पाप इसी लोक में छूट जाते हैं .