Monday, July 8, 2013

... व्रतादि निर्णय स्वयं कैसे करें ...

.................. व्रतादि निर्णय स्वयं कैसे करें ..................
-------------------------------------------------------------
..... मेरे आत्मीय मित्रों ! यथोचित अभिवादन , आम जनमानस , को व्रतादि का निर्णय करने में काफी मुश्किलों का सामना करना पडता है , यहाँ तक कि पंडित गण एवं ज्योतिषी जन भी कभी कभी असमंजस की स्थिति में पड़ जाते हैं . अत: यहाँ दी गयी विधि का अनुशरण करके आप लोग स्वयं व्रतादि का निर्णय कर सकते हैं . बहुत आसान है.
..... सबसे पहले तो स्मार्त और वैष्णव का अंतर समझ लें , स्मार्त का मतलब है " गृहस्थ " , अर्थात स्मृति के आदेशानुसार अपने समस्त कर्मकांड करने वालों को ' स्मार्त ' कहा जाता है . और वैष्णव का मतलब है वैष्णव सम्प्रदाय के मतावलम्बी, अधिकतर लोग वैष्णव का मतलब सीधे सीधे शाकाहारी (सनातनी ) हिन्दू से लगा लेते हैं , जबकि ऐसा नहीं है यह एक सम्प्रदाय है जिसमें रामानुज संत आदि आते है .
..... ' सर्व कालकृतं मन्ये ' इस सूत्र के अनुसार एक बात जान लें कि , सूर्य ' ब्रह्माण्ड ' की प्राण शक्ति का केंद्र है , और चन्द्रमा ' ब्रह्माण्ड ' की ' मन: शक्ति का सर्वस्व ' . इन दोनों ( सूर्य-चन्द्रमा) भौतिक पिंडों की विभिन्न कक्षाओं में अवस्थिति ही ' तिथि ' शब्द से जानी जाती है . जैसे अमावस्या तिथि को ' चंद्र-पिण्ड' सूर्य की कक्षा में विलीन रहता है , और पूर्णिमा को यह दोनों पिण्ड क्षितिज पर आमने सामने उदित दिखते हुए समान रेखा पर अवस्थित रहते हैं. इसी प्रकार दोनों पक्षों की अष्टमी तिथि को ये अर्ध सम रेखा पर ही अवस्थित रहते हैं. इससे यह सिद्ध होता है कि , सूर्य - चंद्र का आन्तरिक तारतम्य ही 'तिथि' है , और स्थूल तथा सूक्ष्म जगत् पर तिथिजन्य प्रभाव का सन्निपात ही , तत्तत् तिथियों के अधिष्ठाताओं का, उन पर आधिपत्य है , जबकि स्थूल जगत पर भी उक्त पिंडों की अवस्थिति का प्रभाव तत्तत ऋतुओं के रूप में , वर्षा , ग्रीष्म , शीत , एवं इनके गुण , आंधी , तूफ़ान . भू-कम्प , समुद्रीय ज्वार-भाटा , सुनामी , डीन, रीटा , ओलापात , ज्वालामुखी , बाढ़ , मनोरोग , दावानल , और दिग्दाह के रूप में प्रत्यक्ष दिखाई देता है. इसके बावजूद सूक्ष्म जगत् ( दृश्य संसार ) पर उनकी अवस्थिति के प्रभाव को शंका की दृष्टि से देखना पदार्थ विज्ञान से अनभिज्ञ लोगों का ही काम हो सकता है.
..... सनातन ( हिंदुओं के ) शास्त्रों में काल (समय) को प्रधान कारण माना गया है . कोई अनभिज्ञ भले ही 'काल' को निष्क्रिय मान कर उसकी कारणता में संदेह करे , परन्तु वास्तव 'काल' ही - " अस्ति , जायते , वर्द्धते , विपरिणमते , अपक्षीयते और विनश्यति " इन छः प्रकार के मूल विकारों का प्रधान / प्रमुख कारण है . 'काल' का मुख्य उद्भावक 'सूर्य' है और उसके सहकारी उद्भावक अन्य ग्रह-पिण्ड हैं , जिनमें पृथ्वी के अति निकटवर्ती होने के कारण चंद्र-पिण्ड का ' पार्थिव निर्माण काल ' में सर्वोपरि सहयोग है .
..... इसी कारण से सनातनियों (हिन्दुवों) के सभी सकाम ( जो व्रतादि किसी मनोकामना की पूर्ति आदि के लिए किये जाते हैं वे 'सकाम' , और जिन व्रतादि में , 'मुझे कोई कामना नहीं है , मैं तो यूँ ही कर रहा हूँ उसे 'निष्काम /नि:काम ' व्रत कहते हैं ) निर्णय चांद्र-तिथियों से करने का स्पष्ट आदेश हमारे धर्म-शास्त्रों / स्मृतियों में मिलता है .
..... निष्कर्ष - अब इसका सूत्र भी जान लीजिए , चिंता हरण जंत्री , चिंता हरण पंचांग , ठाकुर प्रसाद कैलेण्डर , श्री विश्वनाथ पंचांग, या अन्य जो भी पंचांग हो उसमें सर्व साधारण की सुविधा के लिए वहाँ 'स्मार्त या वैष्णव ' शब्द से उल्लेख किया जाता है . कुल मतलब यह है कि , जहां 'स्मार्त ' लिखा हो वह व्रतादि ही (गृहस्थों- बाल बच्चेदार ) के करने योग्य होता है . जहां वैष्णव का उल्लेख हो वहाँ , दंडी सन्यासी , मठ-मंदिर , महाभागवत , निम्बार्क , चक्रांकित महाभागवत , आश्रम , सरस्वती , आदि के करने योग्य होता है . इनके नाना प्रकार के अखाड़े हैं , अपने अपने रीति-रिवाज हैं , अपनी परम्पराएं हैं .
..... गृहस्थों को ' स्मार्त निर्णय ' ही ग्रहण करना चाहिए , इस प्रकार आप सभी व्रतों का निर्णय कर सकते हैं...

No comments:

Post a Comment