Monday, January 30, 2017

पंच महापुरूष योग एवं ग्रहों की युतियों का विशेष फल

    ज्योतिष-शास्त्र में योगों का बहुत महत्व बताया गया है, एक कहावत है कि ‘मंदिर में भोग, अस्पताल में रोग और ज्योतिष में योग का अपना एक अलग महत्व है।’
जिस प्रकार से विभिन्न चीजों को आपस में एक विशेष अनुपात में मिलाने से सुस्वादु व्यंजनादि (भोजनादि) तैयार होते हैं, ठीक उसी प्रकार दो या अद्दिक ग्रहों के संयोग से विशेष योग बनता है, जिसका विशेष महत्व जातक के जीवन में पड़ता है। यहाँ पंच महापुरूष योगों एवं ग्रहों की युति से बनने वाले कुछ विशेष योगों पर एक लेख प्रस्तुत कर रही हूँ।
    यदि मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र या शनि अपनी उच्च राशि या मूल त्रिकोण या स्वराशि में स्थित होकर लग्न से केन्द्र (1, 4, 7, 10) में हो तो महापुरूष योग होता है। यदि मंगल उपयुक्त प्रकार से योग करे तो रूचक, बुध करे तो भद्र, बृहस्पति से हंस, शुक्र योगकारक हो, तो मालव्य और शनि अपनी मूल त्रिकोण या उच्च राशि में स्थित केन्द्र में हो तो शश योग होता है। इस में मंत्रेश्वर का कथन है कि, उपयुक्त योग केवल लग्न से केन्द्र में स्वोच्च स्व-राशिस्थ मंगल आदि के होने से तो होता ही है, यदि लग्न से केन्द्र में न हो अपितु चन्द्रमा से केन्द्र में उच्चस्थ स्वराशिस्थ मंगल, बुध आदि पांचों ग्रहों में से केन्द्र में हो तो भी महापुरूष योग होता है। शोध के उपरान्त भी ऐसा फल दिखता है। मानसागरी के मत से मंगल आदि उच्च या स्वराशि में, लग्न से केन्द्र में हो तभी रूचक आदि महापुरूष योग होता है परन्तु यह भी लिखा है कि यदि उपर्युक्त योगकारक (मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र या शनि जो योग बना रहा हो) ग्रह के साथ सूर्य या चन्द्रमा हो तो महापुरूष योग भंग हो जाता है और इस योग का जो विशिष्ट फल लिखा है वह नहीं होता, केवल साधारण अच्छा फल होता है।
केन्द्रोच्चगा यद्यपि भूसुताद्या मार्तण्डशीतांशुयुता भवन्ति।
कुर्वन्ति नोर्वीपतिमात्मपाके यच्छन्ति ते केवल सत्फलानि।।
    सारावली ( त्रिष्कन्ध ज्योतिषाचार्य ब्रह्मलीन पं. सीताराम झा कृत, उल्लेखनीय है कि मेरे पिता जी इनको शुरूआत से ही गुरूवत मानते रहे हैं) अध्याय 24 में पंच महापुरूष योग दिए गए हैं।     बलरहितेन्दुरविभ्यां युक्तैर्भौमादिभिर्ग्रहैर्मिश्राः।
 न भवन्ति महीपाला दशासु तेषां सुतार्थसंयुक्ताः।।
    वराहमिहिर ने भी इन योगों की विवेचना की है। जिसका संकलन मैने किया है।
    अब सर्वप्रथम रूचक योग का फल लिखती हूँ।
रूचक योग (मंगल-जनित)
जातः श्री रूचके बलान्वितवपुः श्रीकीर्तिशीलान्वितः
शास्त्री मन्त्रजपाभिचार कुशलो राजाऽथवा तत्समः।
लावण्यारूणकान्तिकोमलतनुस्त्यागी  जितारिर्धनी
सप्तत्यब्दमितायुषा सह सुखी सेनातुर¯धिपः।
    रूचक योग में उत्पन्न व्यक्ति बलान्वित शरीर, लक्ष्मी (श्री शब्द मूल में आया है इससे शरीर सौष्ठव तथा कान्ति युक्त, यह अर्थ भी लिया जा सकता है), शास्त्री (शास्त्र निष्णात), मंत्रों के जप और अभिचार में कुशल, राजा या राजा के समान, लावण्य युक्त शरीर, लालिमायुक्त, कोमल तन, शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाला, त्यागी, धनी 70 वर्ष की आयु प्राप्त करने वाला, सुखी, सेना और घोड़ों का स्वामी होता है।
    अखण्ड साम्राज्य योग- यदि (1) नवमेश, लाभेश, धनेश (द्वितीय नवम या एकादश) के स्वामी में से कोई एक भी ग्रह चन्द्रमा से केन्द्र में हो और स्वयं गुरू (बृहस्पति) ग्यारहवें घर का स्वामी हो, और ऐसे गुरू की एकादश भाव में दृष्टि हो तो ऐसा जातक अखण्ड साम्राज्य का स्वामी होता है। फलदीपिका में जो पाठ है, उसमें तृतीय चरण में ‘स्वयं च के स्थान में ‘स्वपुत्र’ है-जिसका अर्थ हो जायेगा कि ‘यदि बृहस्पति, पंचम या एकादश का स्वामी हो। योग अच्छा है द्वितीयेश, नवमेश या लाभेश चन्द्रमा से केन्द्र में हो तो धनकारक, भाग्यकारक है परन्तु अखण्ड साम्राज्य पतित्व-इस योग का उत्कृष्ट फल केवल अतिशयोक्ति है, क्योंकि यह योग (सम्पूर्ण) मेरे पिता जी की कुण्डली में है, मगर अखण्ड साम्राज्यपतित्व जैसा कुछ दिखता नहीं, हाँ नाम ( सम्पूर्ण हिन्दी भाषी जगत में ) अवश्य प्रसिद्ध है, लेकिन धन के मामले में तो विशेष नहीं कहा जा सकता।
भद्र योग (बुध-जनित)
    इस योग में उत्पन्न मनुष्य का सिंह के समान चेहरा, हाथी के समान गति, पुष्ट जाँघे, उन्नत वक्षस्थल होता है। उसके बाहु लम्बे गोल और पुष्ट होते हैं और उन्हीं के समान उसका मान होता है। मान क्या? यदि मनुष्य दोनों बाहुओं को फैला कर खड़ा हो तो एक हाथ की मध्यमा अंगुलि के अंत से दूसरे हाथ की मध्यमा अंगुलि के अन्त तक जितनी लम्बाई हो उतनी ही यदि जातक की ऊँचाई हो तो मनुष्य बहुत विशिष्ट पदवी प्राप्त करता है।
    स्कन्दपुराण में लिखा है कि कुसुम से रंगे हुए सूत की तीन लड़ करें और गणेशादि का भक्तिपूर्वक स्मरण कर उत्तराभिमुख दोनों भुजा और हाथ फैला कर खड़े हो जाइये, अर्थात् उत्तर की ओर मुख कर खड़े हुए आदमी का दाहिना हाथ पूर्व की ओर,और बायां हाथ पश्चिम की ओर कंधे के समतल फैला हुआ होगा, दाहिने हाथ की मध्यांगुली (बीच की उंगली) के अन्त से बांये हाथ के बीच की उंगली तक नापे यदि यह ऊँचाई के बराबर हो तो ऐसा मनुष्य श्रेष्ठ अधिकारी होता है।
    भद्र योग में उत्पन्न व्यक्ति, मानी, बन्धु जनों के उपकार में निपुण, विपुल प्रज्ञा, यश, धन वाला होता है 80 वर्ष की आयु होती है।
हंस योग (गुरू-जनित)
    जो हंस योग में जन्म ले उसका मुख (ओष्ठ, तालु जिह्ना) लाल, ऊँची नाक, अच्छे चरण, हंस के समान स्वर, कफ प्रधान प्रकृति, गौर वर्ण, सुकुमार (कोमलांगी) पत्नी, कामदेव के समान सुन्दर सुखी, शास्त्र ज्ञान में अति निपुण, साद्दु (उत्तम) कार्य और आचार वाला होता है और 84 वर्ष की आयु होती है। अघरोष्ठ जिह्ना, तालू का लाल होना सुख और सौभाग्य का लक्षण माना जाता है।
मालव्य योग (शुक्र-जनित)
    जिसका मालव्य योग में जन्म हो उसकी स्त्री के समान चेष्टा (हाथ मटकाना, चलना लज्जा आदि), शरीर संद्दियां ललित (मृदु और सुन्दर), सुन्दर आकर्षक नेत्र, सौन्दर्य युक्त शरीर, गुणी (अनेक सद्गुण सम्पन्न), तेजस्वी स्त्री पुत्र वाहन (सवारी से युक्त) धनी, शास्त्रों का अर्थ जानने वाला पण्डित (विद्वान्), उत्साहयुक्त, प्रभुता शक्तिसम्पन्न (औरों को आज्ञा देने वाला अधिकारी), मंत्रवेत्ता, पत्रकार, साहित्यानुरागी, चतुर, त्यागी, पर स्त्रीरत (दूसरे की स्त्रियां में आसक्त) होता है 80 वर्ष तक जीता है।
शश योग (शनि जनित)
    जो इस योग में उत्पन्न हो वह राजा या राजा के समान वन और पर्वतों में रहने या घूमने वाला, सेनापति (अर्थात् उसके अधीन बहुत आदमी हों) क्रूर बुद्धि, धातु (लोहा, पीतल, चांदी सोना) के वाद विवाद में विनोद करने वाला और ठगने वाला (भावार्थ है कि धातु का काम करें और बेईमानी से कमावे), दाता (देने वाला), जिसकी दृष्टि में क्रोद्द हो, तेजस्वी अपनी माता का भक्त, शूर, श्यामवर्ण, सुखी, जार क्रिया (परस्त्री से मैथुन कार्य) स्वभाव वाला होता है और सत्तर वर्ष की आयु होती है। महापुरूष योग समाप्त।
चन्द्रमा के साथ अन्य ग्रहों की युति का फल
    (1) यदि चन्द्रमा और मंगल एक साथ हो तो जातक शूरवीर सत्कुलोचित धर्म पालन करने वाला, धनी और गुणवान होता है। वराहमिहिर के मत से जातक कूट मारणोच्चाटनादि प्रयोग में निष्णात, स्त्री, आसव कुंभ आदि का क्रय-विक्रय (या गिरवी रखना) शील होता है। कूट का अर्थ नीतिपरक भी हो सकता है। माता के लिये यह योग अकल्याणकारी है। सारावली के अनुसार जातक शूर, रण में प्रतापी, मल्ल (युद्ध या कुश्ती करने वाला) मृत्तिका चर्म या धातु के (कूट का अन्य अर्थ) शिल्प में दक्ष होता है कि रक्त रोग के कारण शरीर में वेदना रहती है। पृथुयशस् के अनुसार चन्द्रमा और मंगल लग्न, पंचम नवम, दशम या एकादश में हो तो धनवान् और राजा के समान होता है। यदि यह योग अन्य स्थान में हो तो बन्धुओं के सुख से हीन हो।
    (2) यदि चन्द्रमा और बुध एक साथ हों तो द्दार्मिक, शास्त्रज्ञ और तदनुसार कार्य और व्यवहार करने वाला, अद्भुत गुणों (या अनेक प्रकार के गुणों से) युक्त होता है। वराहमिहिर के अनुसार मीठे वचन बोलने वाला, अर्थनिपुण, सौभाग्यशाली, यशस्वी होता है। सारावली के अनुसार जातक काव्य तथा कथाओं में अति निपुण, द्दनी स्त्री सम्मत (स्त्रियां जिसको पसन्द करें) सुरूप युक्त, हंसमुख (हमारा अनुभव है कि जातक मजाकिया भी होता है) और विशिष्ट गुणों से युक्त होता है।
    (3) यदि चन्द्रमा और बृहस्पति का योग हो तो जातक साद्दुजनावलम्बी और अत्यन्त मतिमान् (मति में वृद्धि, विवेक आदि का समावेश हो जाता है) होता है, वराहमिहिर के अनुसार जातक विक्रान्त, अपने कुल में मुख्य अति स्थिर मति वाला और अत्यन्त धनी होता है। सारावली के अनुसार देवता और ब्राह्मणों की पूजा और सत्कार में रत, शुभशील, दृढ़, मित्रता निभाने वाला, अपने बन्द्दुओं का सम्मान करने वाला और अत्यन्त धनी हो। पृथुयशस् के अनुसार कि जातक, विनीत, स्त्री, पुत्र सहित (अर्थात इनका सुख हो) और धनी होता है किन्तु यह योग लग्न से तृतीय या षष्ठ में हो या चन्द्रमा और बृहस्पति इन दोनों ग्रहों में कोई नीच (यदि यह युति वृश्चिक/मकर में हो) हो तो शुभ नहीं होता है।
    (4) यदि चन्द्रमा और शुक्र का योग हो तो जातक क्रय-विक्रय (खरीद-फरोख्त) में कुशल किन्तु पापात्मा होता है। वराहमिहिर के मत से वस्त्रों के क्रय आदि में कुशल होता है। सारावली के अनुसार क्रय-विक्रय कुशल, अत्यन्त आलसी होता है। पृथुयशस् के अनुसार जातक धनाध्यक्ष होता है और यदि यह योग लग्न से दशम या द्वादश भाव में हो तो विदेश से धन प्राप्ति।
    (5) यदि चन्द्रमा और शनि की युति हो तो जातक कु-स्त्री (जो स्त्री अच्छी न हो) का पुत्र होता है। जातक अपने पिता का दूषक होता है (अपने पिता की निन्दा करता है या अपने आचरण से पिता के कुल को दोष लगाता है) और उसका धन नष्ट हो जाता है, (लेकिन अन्य ग्रहों का योग देखना भी आवश्यक है)। वराहमिहिर के मत से जातक पुनर्भूसुत होता है। जिस स्त्री का द्वितीय बार विवाह हो उसे पुनर्भूसुत कहते हैं। सब जातियों में स्त्री का पुनर्विवाह प्रचलित नहीं है, इस कारण रुद्रभट्ट के अनुसार उसकी माता जारादि से उपभुक्त हो। सारावली के अनुसार जातक (अपने वय से) अधिक वय की स्त्रियों से रमण करता है, हाथी, घोड़ों का पालन करता है या उनको शिक्षा देता है, अब हाथी, घोड़े तो इतने रहे नहीं, इसलिये मोटर, स्कूटर, ट्रक, टैम्पो, इंजन, जहाज, हवाई जहाज, कल कारखानों में मशीन चलाने वाला या उस तत्व से सम्बन्धित व्यवसाय में लगा हुआ यहाँ यह अर्थ लेना होगा)। ऐसा जातक सौशील्यादि गुण रहित, पराजित, धन रहित होता है। दूसरे की मातहती में कार्य करता है। पृथुयशस् के अनुसार जातक दुर्बल देह युक्त अति नीच कार्य करने वाला, मातृद्वेषी (अपनी माता से बैर करने वाला) और बुद्धिहीन होता है किन्तु यदि यह युति लग्न से तृतीय, षष्ठ, दशम या एकादश में हो तो जातक सर्वसम्पन होता है।
केन्द्र में योग
    अब चन्द्रमा यदि किसी ग्रह के साथ केन्द्र में युति करे तो सारावली में जो विशेष फल कहा है, उससे पाठकों को अवगत कराया जाता है।
    (1) यदि चन्द्रमा और मंगल की युति लग्न में हो तो रक्त, अग्नि, और पित्त रोगों से पीड़ित हो। जातक राजा होता है किन्तु उसके स्वभाव में तीक्ष्णता होती है। यदि यह युति लग्न से चतुर्थ में हो तो जातक विकल, क्लेश युक्त, द्रव्यहीन, सुख, सुत धन और बन्धु इनसे हीन होता है। यदि चन्द्र और मंगल सप्तम में हो तो जातक क्षुद्र, दूसरे का धन प्राप्त करने का लोभी, बहुत प्रलाप करने वाला, ईर्ष्या युक्त, मिथ्यावादी हो। दशम में यदि यह युति हो तो हाथी और घोड़ां और सेना से युक्त, सम्पन्न, और विशेष विक्रमशाली होता है।
    (2) यदि चन्द्रमा और बुध लग्न में योग करें तो सुखी, बुद्धिमान् देखने में सुन्दर, अत्यन्त निपुण और वाचाल हो। यदि यह युति चतुर्थ में हो तो जातक सुन्दर, सुवर्ण, अश्व रत्नों का स्वामी हो। उसके बन्धु, मित्र, सुत हों। ऐसा जातक प्रतापी और सुखी हो, यदि यह दोनों ग्रह लग्न से सप्तम में हो तो जातक का ललित शरीर हो। वह सत्कवि (काव्य कला युक्त अथवा बुद्धिमान्) विख्यात् और प्रतापी होता है। ऐसा जातक राजा हो या राजा का विशेष कृपापात्र हो। यदि यह योग दशम में हो जातक मानी, द्दनवान् और अति विख्यात हो। राजा का मंत्री हो किन्तु अपने जीवन के अंत में दुःखी हो, और सम्भव है कि उसके बन्धु उसे छोड़ दें।
    (3) यदि चन्द्रमा और बृहस्पति की युति लग्न में हो तो विस्तृत और उच्च वक्षस्थल युक्त, अच्छे शरीर से युक्त बहुत मित्रों पुत्रों और स्त्रियों वाला (पहिले अनेक पत्नियों का होना या अनेक स्त्रियों का भोग सुख और सौभाग्य का लक्षण माना जाता था), बन्धुओं से युक्त राजा होता है। यदि यह युति लग्न से चतुर्थ में हो तो राजा के समान मंत्री, महावैभवशाली, बहुत शास्त्रों का ज्ञाता निर्मल बुद्धि युक्त, बन्धओं से समन्वित होता है। चन्द्रमा और बृहस्पति की युति यदि सप्तम स्थान में हो तो जातक कला कुशल, व्यापार करने वाला, धनवान् निर्मल, राजा का कृपापात्र या स्वयं राजा अत्यन्त बुद्धिमान् हो। यदि दशम भाव में यह युति हो तो प्रलम्ब बाहु (लम्बे बाहु होना सौभाग्य और अधिकार का सूचक है) ऐसा जातक विद्वान धनी और दानशील होता है और सम्मान तथा कीर्ति पाता है।
    (4) यदि चन्द्रमा और शुक्र की युति लग्न में हो तो सुन्दर शरीर हो, गुरूजन उससे प्रसन्न रहें। सुन्दर वस्त्र, पुष्पमाला, सुगन्धि युक्त पदार्थों का सेवन करे (अर्थात् शौकीन हो)। वेश्या और स्त्रियों और परिवार से सुख हो। नौका या जहाजों (जलयानों) से या इनके माध्यम से लाए गये पदार्थों से धन की प्राप्ति हो। जातक जनप्रिय और भोग सम्पन्न होता है। चन्द्र और शुक्र यदि सप्तम में हो तो जातक बहुत सी युवतियों में रत हो, बहुत द्दन नहीं होता न बहुत पुत्र संतान होते हैं। कन्याएं अधिक होती हैं। राजा के समान (भोगशील) चरित्र वाला और मेधावी हो। यदि यह युति दशम में हो तो जातक के अधीन बहुत से आदमी होते हैं, वह उच्च, सम्मानित अद्दिकारी (हुकूमत करने वाला) विख्यात, मंत्री या राजा, वैभव युक्त होता है। वह क्षमावान् होता है।   
    (5) यदि चन्द्र और शनि की युति लग्न में हो तो जातक दास (मातहती में काम करने वाला) कर्म करने वाला, दुष्ट, क्रोधी, लोभी, हीन छोटे दर्जे का काम, चरित्र या पद में छोटी कक्षा का)। ऐसे जातक अधिक निद्राशील, आलसी और पापी होते हैं। यदि यह दोनों ग्रह चतुर्थ में हो तो जल (जल में उत्पन्न या जल मार्ग से लायी या ले जायी गई वस्तुओं) से नौका, जहाज, मुक्ता, मणि, आदि से आजीविका उपार्जन करता है या खुदाई (खनन-मकान, बावड़ी, कूप, तालाब, बाँध, आदि की खुदाई या तेल, पेट्रोल, खनिज पदार्थों से सम्बन्द्दित खुदाई), पत्रकारिता से द्रव्य कमाता है। ऐसे जातक श्रेष्ठ होते हैं और लोग उनकी प्रशंसा करते हैं। यदि चन्द्र-शनि योग लग्न से सप्तम में हो तो जातक नगर, ग्राम या पुर में महान, राजा से सम्मानित होता है, किन्तु युवति हीन (स्त्री रहित, अर्थात विवाह न हो या पत्नी जीवित न रहे) होता है। यदि चन्द्र शनि युति दशम में हो तो नराधिप (राजा या जन समुदाय पर हुकूमत करने वाला) होता है, अपने शत्रुओं का दमन करने में ऐसे लोग अत्यन्त कुशल होते हैं, विख्यात हो, माता का सुख कम होता है।
मंगल की अन्य ग्रहों से युति
    अब मंगल की अन्य ग्रहों से युति का फल कहते हैं। सर्वप्रथम जातक पारिजात का मत देखिये, तदन्तर अन्य आचार्यों का मत भी दिया जा रहा है। चन्द्र-मंगल युति पीछे लिखी हैं।
    (1) यदि मंगल और बुध की युति हो तो वाग्मी, औषद्दि, शिल्प और शास्त्र में (या शिल्प शास्त्र में) कुशल होता है। वराहमिहिर के मत से मूल (नाल, पत्र, पुष्प, फल, वल्कल आदि), स्नेह (तैल, घृत, वसा, मज्जा-सम्प्रति, ग्रीज, वैसलीन, मोबिल आयल आदि भी) कूट (विविध द्दातुओं से मिश्रित जो वस्तुएं बनायी जाती हैं) आदि का व्यापार करता है और बाहु योद्धा (पहलवान, मल्ल कुश्ती लड़ने वाला) होता है। कूट से कूटनीतिज्ञ, सत्य, असत्य वचनों से अपना काम निकालने वाला जानना चाहिये, क्योंकि बुध वाणी का मुख्य कारक है। सारावली के अनुसार जातक की स्त्री अच्छी न हो, सोने, लोहे मशीनरी का काम करने वाला, दुष्ट स्त्री और विधवा जिसकी रखैल हो, तथा औषध क्रिया में निपुण (वैद्य, हकीम, डाक्टर, कम्पाउण्डर, केमिस्ट, ड्रगिस्ट, सर्जन आदि) होता है।
    (2) यदि मंगल और बृहस्पति का योग हो तो कामी, पूज्य गुणान्वित और गणित शास्त्र का ज्ञानी होता है। वराहमिहिर के अनुसार मंगल सत्व तथा बृहस्पति (ज्ञान) के योग बल से नगर  अध्यक्ष, सभासद, मेयर, पालिका चेयरमैन आदि हो, या राजा (या सरकार) से धन प्राप्त करता है। सारावली के मत से शिल्प, वेद तथा अन्य शास्त्रों में निष्णात् मेधावी, वाग्विशारद (वाणी-शूर), बुद्धिमान् और दीर्घायु, पुत्रवान् और विनीत होता है, किन्तु यदि यह युति लग्न से षष्ठ, अष्टम या द्वादश में हो तो व्यसनी, रोगी और कम धन, आलसी, निष्ठुर वाला हो।
    (3) यदि मंगल और शुक्र एक साथ हो तो धातुओं (लोहा आदि) के कार्य में संलग्न, प्रपंच-रसिक (मायावी, सत्य असत्य का विचार न करने वाला) और कपटी होता है। वराहमिहिर के अनुसार गायों का पालन करने वाला, मल्ल (कुश्ती लड़ने वाला) शीघ्र कार्य-कर्त्ता कुशल, परदारा गमन में रूचिशील, जुआँ, सट्टा, रेस, लॉटरी, मटका आदि में रूपया लगान में अग्रणी होता है। पृथुयशस् के अनुसार जातक, चपल, स्त्री या स्त्रियों के वश में दुष्ट कर्म कर्ता होता है किन्तु यदि यह युति लग्न, चतुर्थ या दशम में हो तो वह अपने कुल की अपेक्षा अधिक उच्च स्थान प्राप्त करता है, या अपने ग्राम-शहर का नेता होता है।
    (4) यदि मंगल और शनि की युति हो तो वादी, वकील, गान, विनोद, हँसी, मजाक, कौतुक का रचने वाला किन्तु प्रायः मन्दमति (बुद्धिमान कम) होता है। वराहमिहिर के अनुसार दुःख से पीड़ित, असत्य वाणी तथा मिथ्या व्यवहार शील तथा निन्दित होता है। सारावली के अनुसार धातु के कार्यों में कुशल, इन्द्रजाल में (जादूगरी) निपुण, धोखा देने वाला चोरी के कार्यों में चतुर, कलह प्रिय, शस्त्र या विष से पीड़ित, विधर्मी (अपने धर्म का पालन न करने वाला) होता है। पृथुयशस् के अनुसार मंगल और शनि की युति हो तो सदैव दुःखी (मानसिक या शारीरिक पीड़ायुक्त-विशेष कर वात और पित्त रोगों से) रहता है। किन्तु यदि यह युति लग्न से तृतीय, षष्ठ, दशम या एकादश भाव में हो तो विख्यात्, राजा के समान होता है और लोग उसे पसन्द करते हैं अर्थात् जन प्रिय होता है।
केन्द्र में योग
    मंगल का अन्य ग्रहों के साथ यदि केन्द्र में योग हो तो सारावली में विशेष फल दिया गया है। अब मंगल का योग बुध, बृहस्पति, शुक्र या शनि के साथ केन्द्र में हो तो सारावली के अनुसार उसका फल नीचे है।
    (1) मंगल और बुध की युति यदि लग्न में हो तो हिंसक (क्रूर, भयानक), अग्नि कर्म में कुशल (फैक्ट्री आदि जहाँ अग्नि का कार्य होता है) धातुओं का कार्य करने वाला, दूत, होता है और जो वस्तु गुप्त रखी जाती है, उनका अधिकारी होता है। यदि यह युति चतुर्थ में हो तो अपने परिवार जनों से निरादृत, तिरस्कृत, बन्धु-बान्धव से रहित या उनका विरोद्दी होता है किन्तु मित्र बहुत होते हैं और धन, अन्न, भोग-विलास, वाहन आदि से सम्पन्न होता है। यदि इन दोनों ग्रहों का योग लग्न से सप्तम में हो तो जातक की प्रथम स्त्री की मृत्यु या विच्छेद हो जाता है, विवाद प्रिय होता है, एक स्थान से दूसरे स्थान में जाता है। स्थायी रूप से एक स्थान में वास नहीं रहता, नीचों की मातहती, में काम करता है। यदि मंगल बुद्द युति दशम में हो तो सेना का अधिपति, शूर, शठ, दुष्ट स्वभाव, अति क्रूर होता है किन्तु द्दैर्य की मात्रा विशेष होती है, राजा का कृपा-पात्र होता है।
    (2) यदि मंगल बृहस्पति की युति लग्न में हो तो मंत्री या अपने विशिष्ट गुणों के कारण प्रधान पद प्राप्त करे। सदैव उत्साही रहे और धार्मिक क्षेत्र में कीर्तियुक्त होता है। यदि इन दोनों ग्रहों की युति लग्न से चतुर्थ स्थान में हो तो जातक गुरू और देवताओं का भक्त होता है, राजा की सेवा करता है। बन्धु और मित्रों से सम्पन्न सुखी जीवन व्यतीत करता है। जिस जातक के सप्तम स्थान में मंगल बृहस्पति हो वह रण में शूरवीर होता है, पर्वत, किला, वन और नदी तट या समुद्र तट उसे प्रिय होते हैं। उसके अच्छे भाई-बन्धु होते हैं किन्तु पत्नी से कष्ट होता है अर्थात् (यह योग सप्तम में मंगल होने के कारण मंगलीक योग कारक है) पत्नी सुख के लिये हानिकारक है। यदि यह युति लग्न से दशम में हो तो विख्यात कीर्तिवाला हो, बहुत धनी और विस्तृत परिवार हो, कार्यों में बहुत दक्ष हो और राजा होता है।
    (3) यदि मंगल और शुक्र की युति लग्न में हो तो जातक कुशील, निष्ठुर, नैतिकताहीन, वेश्यागामी होता है। दीर्घायु भी नहीं होता और स्त्रियों पर या स्त्रियों के लिये धन नष्ट करता है। यदि इन दोनों ग्रहों की युति चतुर्थ भाव में हो तो बन्धु पुत्र, और मित्रों से हीन होता है, मानसिक पीड़ा से कष्ट होता है। यदि इन दोनों ग्रहों का योग लग्न से सप्तम में हो तो स्त्री-लोलुप, कुचरित्रवान् आचारहीन होता है। स्त्रियों के कारण दुःख पाता है। यदि यह युति दशम में हो तो शस्त्र विद्या में निष्णात, बुद्धिमान, विद्या द्दन से युक्त, विख्यात पुरूष या राजमन्त्री होता है।
    (4) यदि मंगल तथा शनि की युति लग्न में हो तो अल्पायु, (किन्तु मंगल या शनि लग्नाधिपति होकर लग्न में हो तो यह अशुभ दोष नहीं होगा यह बात ध्यान में रखना चाहिए), माता से द्वेष करता है, क्षीण भाग्य, संग्रामजयी होता है। यदि यह युति लग्न से चतुर्थ में हो तो पापकर्म में रत होता है। उसके स्वजन उसका त्याग कर देते हैं, मित्र नहीं होते, भोजन और सुख से रहित होता है अर्थात् सुखी नहीं होता। चतुर्थ भाव सुख स्थान है इस कारण क्रूर ग्रह की युति चतुर्थ स्थान में सुख की हानि करती है। यदि सप्तम में यह युति हो तो पत्नी के सुख से रहित, पुत्र के सुख से विरत, अल्प-धनी, रोगी, व्यसनी, कृपण, होता है।
बुध की अन्य ग्रहों से युति
    बुध की सूर्य, चन्द्र या मंगल के साथ युति का फल पहले लिख चुकी हूँ। अब यदि बुध, बृहस्पति, शुक्र या शनि के साथ योग करे तो उसका फल कहते है।
    (1) जातक पारिजात के अनुसार यदि बुध और बृहस्पति एक साथ हो तो जातक वाग्मी, सारपूर्ण वक्ता, स्वरूपवान्, सद्गुणी और विशेष धनी होता है। वराहमिहिर के अनुसार संगीत प्रिय  नृत्य-प्रिय, रंगकर्मी, नाटक, सिनेमा आदि की वृत्ति से धनोपार्जन करने वाला होता है। सारावली के मत से जातक सुखी, विद्वान, मतिमान, गाने बजाने, नृत्य आदि का ज्ञाता होता  है। पृथुयशस् के अनुसार बुध-बृहस्पति की युति से जातक बहरा, नेत्र रोग से पीड़ित, पर विद्वान होता है, यदि यह युति लग्न से छठे, आठवें या बारहवें घर में हो तो सुन्दर, धार्मिक और विख्यात् होता है।
    (2) यदि बुध और शुक्र की युति हो तो शास्त्रज्ञ, गान, विनोद तथा हास्य का रसिक होता है। वराहमिहिर के अनुसार वाग्मी, व्यक्तियों के समूह का पालक होगा। रुद्रभट्ट के अनुसार यदि बुध और शुक्र दोनों बलवान् हो तो भूमि-पति या सेनापति होगा। सारावली के अनुसार जातक अतिशय धनी, नीतिज्ञ, शिल्पवान्, वेदों का विद्वान अच्छे सारपूर्ण और मधुर वचन बोलने वाला, गीतज्ञ, हंसी-मजाक में निपुण होता है।
    (3) यदि बुध और शनि की युति हो तो विद्वान उच्च पदारूढ़, धार्मिक मायावी (मिथ्याचरण का आश्रय लेकर, दूसरों के मन में भ्रम पैदा करने वाला) और शास्त्रीय वृत्ति तथा लोक वृत्ति का उल्लंघन करने वाला होता है। सारावली के अनुसार जातक ऋणवान पाठान्तर से गुणवान् भी, दाम्भिक, प्रपंची, सत्कवि, घूमने का शौकीन, निपुण तथा मोहक वक्ता होता है।
केन्द्र में योग
    (1) बुध-बृहस्पति युति यदि लग्न में हो तो शुभ स्वरूप, सौशील्यादि गुण सम्पन्न, विद्वान, राजाओं से सम्मानित, अनेक भोगों का भोक्ता, वाहन युक्त, सुखी और भोगी होता है। यदि यह युति चतुर्थ स्थान में हो तो राजा का कृपा पात्र, स्त्री मित्रों बन्धुओं से सम्पन्न, सौभाग्यशाली धनी और सुखी होता है। यदि बुध-बृहस्पति योग सप्तम में हो तो अच्छी पत्नी का स्वामी सत्व (साहस, पुरूषार्थ बल) सम्पन्न होता है, शत्रुओं पर विजय प्राप्त हो, धनी, बहुत परिजनों और मित्रों से युक्त और अपने पिता की अपेक्षा बहुत उच्च पद, मान-प्रतिष्ठा आदि में होता है। यदि इन दोनों ग्रहों की युति लग्न से दशम में हो तो राजा या मंत्री हो, उसका बहुत सम्मान हो, हुकूमत करे, धनी और विद्वान हो, उसकी बहुत ख्याति होती है।
    (2) यदि बुध और शुक्र की युति लग्न में हो तो सुन्दर और स्वस्थ हो, ब्राह्मणों और देवताओं का भक्त हो, स्वयं विद्वान और राजा से सम्मानित होता है। ऐसा व्यक्ति विख्यात और प्रशंसनीय होता है। यदि यह युति लग्न से चतुर्थ में हो तो सुन्दर शरीर हो मित्र, पुत्र बन्धओं से युत हो। ऐसा व्यक्ति, कल्याण, सम्पन्न (शुभगुण, सम्पत्ति युक्त) राजा या राजा का मंत्री हो। यह युति सप्तम में होने से बहुत सी सुन्दर स्त्रियों से रति-सुख होता है।
    (3) यदि बुध और शनि की युति लग्न में हो तो मलिन शरीर, पापी, विद्या, धन और वाहन से हीन, अल्पायु और मन्द भाग्य, होता है। चतुर्थ में यह युति होने से, भोजन पेय, तथा बन्धुओं से रहित मूढ़, स्वजनों से तिरस्कृत, पापकर्मी होता है उसके मित्र कम हों। सप्तम में यदि इन दोनों ग्रहों का योग हो तो अति मलिन होता है, न साधु होता है, न परोपकारी अर्थात दुष्ट होता है। मिथ्यावादी होता है, किन्तु इन दोनों ग्रहों का योग यदि लग्न से दशम में हो तो अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करे, ब्राह्मणों, गुरूओं तथा देवताओं में श्रद्धा रखे, स्वजनों तथा मित्रों से युक्त, वाहनों का स्वामी, धन से सम्पन्न होता।
बृहस्पति की अन्य ग्रहों की युति
    अब बृहस्पति की शुक्र तथा शनि से युति का फल कहते हैं। बृहस्पति की अन्य ग्रहों से युति पहले लिख चुकी हूँ।
    (1) जातक पारिजात के अनुसार यदि बृहस्पति और शुक्र की युति हो तो तेजस्वी, राजा का प्रिय, अत्यन्त बुद्धिमान् और शूरवीर होता है। वराहमिहिर के मत से जातक सज्जन, विद्वान् अनेक गुण सम्पन्न, धनी और पत्नी सुख सम्पन्न होता है। सारावली के अनुसार जातक की विशिष्ट (उत्कृष्ट धन कुलादि के कारण या सौन्दर्य सौशील्य विद्यादि गुण सम्पन्न) पत्नी हो, प्रामाणिक बात बोलने वाला और जिसमें विश्वास किया जा सके विशेष रूप से धार्मिक, विद्या से धन उपार्जन करने वाला होता है।
    (2) यदि बृहस्पति और शनि एक साथ हों तो शिल्प शास्त्र में निपुण हो। वराहमिहिर के मत से नापित (नाई) का काम करने वाला, कुम्हार या अन्न दान कर्म तत्पर होता है। रुद्रभट्ट के अनुसार नाई या कुम्हार के काम में कुशल हो (शनि के संयोग से कर्म कुशलता दिखलायी और अन्न दान कर्म कर्तव्य से सद्गुणातिरेक कहा गया है।
    सारावली के अनुसार जातक शूर धन समृद्ध, यशस्वी, श्रेणि, सभा, ग्राम, संघ आदि का प्रद्दान होता है। किसी कार्य विशेष के करने वालों के समुदाय को श्रेणि कहते हैं। पृथुयशस् के अनुसार यदि अनुपचय (लग्न, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, अष्टम, नवम या द्वादश) स्थान में बृहस्पति और शनि का योग हो तो मान और धन से हीन होता है।
केन्द्र में योग
    लग्न, चतुर्थ, सप्तम या दशम, में बृहस्पति शुक्र या बृहस्पति शनि के युति का विशेष फल सारावली में कहा है। वह लिख रही हूँ।
    (1) यदि बृहस्पति और शुक्र की युति लग्न में हो तो राजा के समान भूमि-पति होता है। चतुर्थ में यह युति होने से देव गुरू, द्विजों की अर्चना करता है। अपने कुटुम्बीजनों-आत्मीयों मित्रों से युक्त धन सम्पन्न होता है। उसके अनेक वाहन होते हैं और शत्रुओं को परास्त करता है। यदि बृहस्पति शुक्र का योग सप्तम में हो तो अच्छी पत्नी प्राप्त हो, धन और रत्नों का स्वामी, सुखी और भोगवान होता है, उत्कृष्ट वाहन (सवारी रथ, घोड़े, हाथी, पालकी सम्प्रति मोटर आदि) होते हैं और विख्यात होता है, (यह योग मेरे पिता जी की कुण्डली में स्पष्ट है, मगर नाम अवश्य प्रसिद्ध है, लेकिन धन-मोटर आदि के मामले में उत्कृष्ट तो नहीं कहा जा सकता, हाँ अपने कार्य-व्यापार के सिलसिले में जब वे अपने भक्तों आदि के साथ बाहर जाते हैं, तब तो एक से एक बड़े वाहन (यहाँ तक कि बी.एम.डब्ल्यू, मर्सिडीज, लैंड-क्रूजर, हवाई जहाज आदि तक का सुख काफी कुछ उन्हें मिलता है, हाँलांकि 1 मारूति 1 कॉन्टेसा 1 अम्बेसडर 1 फियेट, 1 रॉयल इन्फील्ड वे रख चुके हैं जिसमें वर्तमान् समय में 1 मारूति 1 कॉन्टेसा ही है, जिसमें कॉन्टेसा तो नगण्य ही मानी जायगी, का सुख भोगते हैं)। यदि यह युति दशम में हो तो बहुत से सेवक हों, अद्दिक सम्पन्न (द्दनी) हों, तथा गुण से समन्वित होता है।
        ज्योतिष-शास्त्र में योगों का बहुत महत्व बताया गया है, एक कहावत है कि ‘मंदिर में भोग, अस्पताल में रोग और ज्योतिष में योग का अपना एक अलग महत्व है।’
जिस प्रकार से विभिन्न चीजों को आपस में एक विशेष अनुपात में मिलाने से सुस्वादु व्यंजनादि (भोजनादि) तैयार होते हैं, ठीक उसी प्रकार दो या अद्दिक ग्रहों के संयोग से विशेष योग बनता है, जिसका विशेष महत्व जातक के जीवन में पड़ता है। यहाँ पंच महापुरूष योगों एवं ग्रहों की युति से बनने वाले कुछ विशेष योगों पर एक लेख प्रस्तुत कर रही हूँ।
    यदि मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र या शनि अपनी उच्च राशि या मूल त्रिकोण या स्वराशि में स्थित होकर लग्न से केन्द्र (1, 4, 7, 10) में हो तो महापुरूष योग होता है। यदि मंगल उपयुक्त प्रकार से योग करे तो रूचक, बुध करे तो भद्र, बृहस्पति से हंस, शुक्र योगकारक हो, तो मालव्य और शनि अपनी मूल त्रिकोण या उच्च राशि में स्थित केन्द्र में हो तो शश योग होता है। इस में मंत्रेश्वर का कथन है कि, उपयुक्त योग केवल लग्न से केन्द्र में स्वोच्च स्व-राशिस्थ मंगल आदि के होने से तो होता ही है, यदि लग्न से केन्द्र में न हो अपितु चन्द्रमा से केन्द्र में उच्चस्थ स्वराशिस्थ मंगल, बुध आदि पांचों ग्रहों में से केन्द्र में हो तो भी महापुरूष योग होता है। शोध के उपरान्त भी ऐसा फल दिखता है। मानसागरी के मत से मंगल आदि उच्च या स्वराशि में, लग्न से केन्द्र में हो तभी रूचक आदि महापुरूष योग होता है परन्तु यह भी लिखा है कि यदि उपर्युक्त योगकारक (मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र या शनि जो योग बना रहा हो) ग्रह के साथ सूर्य या चन्द्रमा हो तो महापुरूष योग भंग हो जाता है और इस योग का जो विशिष्ट फल लिखा है वह नहीं होता, केवल साधारण अच्छा फल होता है।
केन्द्रोच्चगा यद्यपि भूसुताद्या मार्तण्डशीतांशुयुता भवन्ति।
कुर्वन्ति नोर्वीपतिमात्मपाके यच्छन्ति ते केवल सत्फलानि।।
    सारावली ( त्रिष्कन्ध ज्योतिषाचार्य ब्रह्मलीन पं. सीताराम झा कृत, उल्लेखनीय है कि मेरे पिता जी इनको शुरूआत से ही गुरूवत मानते रहे हैं) अध्याय 24 में पंच महापुरूष योग दिए गए हैं।     बलरहितेन्दुरविभ्यां युक्तैर्भौमादिभिर्ग्रहैर्मिश्राः।
 न भवन्ति महीपाला दशासु तेषां सुतार्थसंयुक्ताः।।
    वराहमिहिर ने भी इन योगों की विवेचना की है। जिसका संकलन मैने किया है।
    अब सर्वप्रथम रूचक योग का फल लिखती हूँ।
रूचक योग (मंगल-जनित)
जातः श्री रूचके बलान्वितवपुः श्रीकीर्तिशीलान्वितः
शास्त्री मन्त्रजपाभिचार कुशलो राजाऽथवा तत्समः।
लावण्यारूणकान्तिकोमलतनुस्त्यागी  जितारिर्धनी
सप्तत्यब्दमितायुषा सह सुखी सेनातुर¯धिपः।
    रूचक योग में उत्पन्न व्यक्ति बलान्वित शरीर, लक्ष्मी (श्री शब्द मूल में आया है इससे शरीर सौष्ठव तथा कान्ति युक्त, यह अर्थ भी लिया जा सकता है), शास्त्री (शास्त्र निष्णात), मंत्रों के जप और अभिचार में कुशल, राजा या राजा के समान, लावण्य युक्त शरीर, लालिमायुक्त, कोमल तन, शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाला, त्यागी, धनी 70 वर्ष की आयु प्राप्त करने वाला, सुखी, सेना और घोड़ों का स्वामी होता है।
    अखण्ड साम्राज्य योग- यदि (1) नवमेश, लाभेश, धनेश (द्वितीय नवम या एकादश) के स्वामी में से कोई एक भी ग्रह चन्द्रमा से केन्द्र में हो और स्वयं गुरू (बृहस्पति) ग्यारहवें घर का स्वामी हो, और ऐसे गुरू की एकादश भाव में दृष्टि हो तो ऐसा जातक अखण्ड साम्राज्य का स्वामी होता है। फलदीपिका में जो पाठ है, उसमें तृतीय चरण में ‘स्वयं च के स्थान में ‘स्वपुत्र’ है-जिसका अर्थ हो जायेगा कि ‘यदि बृहस्पति, पंचम या एकादश का स्वामी हो। योग अच्छा है द्वितीयेश, नवमेश या लाभेश चन्द्रमा से केन्द्र में हो तो धनकारक, भाग्यकारक है परन्तु अखण्ड साम्राज्य पतित्व-इस योग का उत्कृष्ट फल केवल अतिशयोक्ति है, क्योंकि यह योग (सम्पूर्ण) मेरे पिता जी की कुण्डली में है, मगर अखण्ड साम्राज्यपतित्व जैसा कुछ दिखता नहीं, हाँ नाम ( सम्पूर्ण हिन्दी भाषी जगत में ) अवश्य प्रसिद्ध है, लेकिन धन के मामले में तो विशेष नहीं कहा जा सकता।
भद्र योग (बुध-जनित)
    इस योग में उत्पन्न मनुष्य का सिंह के समान चेहरा, हाथी के समान गति, पुष्ट जाँघे, उन्नत वक्षस्थल होता है। उसके बाहु लम्बे गोल और पुष्ट होते हैं और उन्हीं के समान उसका मान होता है। मान क्या? यदि मनुष्य दोनों बाहुओं को फैला कर खड़ा हो तो एक हाथ की मध्यमा अंगुलि के अंत से दूसरे हाथ की मध्यमा अंगुलि के अन्त तक जितनी लम्बाई हो उतनी ही यदि जातक की ऊँचाई हो तो मनुष्य बहुत विशिष्ट पदवी प्राप्त करता है।
    स्कन्दपुराण में लिखा है कि कुसुम से रंगे हुए सूत की तीन लड़ करें और गणेशादि का भक्तिपूर्वक स्मरण कर उत्तराभिमुख दोनों भुजा और हाथ फैला कर खड़े हो जाइये, अर्थात् उत्तर की ओर मुख कर खड़े हुए आदमी का दाहिना हाथ पूर्व की ओर,और बायां हाथ पश्चिम की ओर कंधे के समतल फैला हुआ होगा, दाहिने हाथ की मध्यांगुली (बीच की उंगली) के अन्त से बांये हाथ के बीच की उंगली तक नापे यदि यह ऊँचाई के बराबर हो तो ऐसा मनुष्य श्रेष्ठ अधिकारी होता है।
    भद्र योग में उत्पन्न व्यक्ति, मानी, बन्धु जनों के उपकार में निपुण, विपुल प्रज्ञा, यश, धन वाला होता है 80 वर्ष की आयु होती है।
हंस योग (गुरू-जनित)
    जो हंस योग में जन्म ले उसका मुख (ओष्ठ, तालु जिह्ना) लाल, ऊँची नाक, अच्छे चरण, हंस के समान स्वर, कफ प्रधान प्रकृति, गौर वर्ण, सुकुमार (कोमलांगी) पत्नी, कामदेव के समान सुन्दर सुखी, शास्त्र ज्ञान में अति निपुण, साद्दु (उत्तम) कार्य और आचार वाला होता है और 84 वर्ष की आयु होती है। अघरोष्ठ जिह्ना, तालू का लाल होना सुख और सौभाग्य का लक्षण माना जाता है।
मालव्य योग (शुक्र-जनित)
    जिसका मालव्य योग में जन्म हो उसकी स्त्री के समान चेष्टा (हाथ मटकाना, चलना लज्जा आदि), शरीर संद्दियां ललित (मृदु और सुन्दर), सुन्दर आकर्षक नेत्र, सौन्दर्य युक्त शरीर, गुणी (अनेक सद्गुण सम्पन्न), तेजस्वी स्त्री पुत्र वाहन (सवारी से युक्त) धनी, शास्त्रों का अर्थ जानने वाला पण्डित (विद्वान्), उत्साहयुक्त, प्रभुता शक्तिसम्पन्न (औरों को आज्ञा देने वाला अधिकारी), मंत्रवेत्ता, पत्रकार, साहित्यानुरागी, चतुर, त्यागी, पर स्त्रीरत (दूसरे की स्त्रियां में आसक्त) होता है 80 वर्ष तक जीता है।
शश योग (शनि जनित)
    जो इस योग में उत्पन्न हो वह राजा या राजा के समान वन और पर्वतों में रहने या घूमने वाला, सेनापति (अर्थात् उसके अधीन बहुत आदमी हों) क्रूर बुद्धि, धातु (लोहा, पीतल, चांदी सोना) के वाद विवाद में विनोद करने वाला और ठगने वाला (भावार्थ है कि धातु का काम करें और बेईमानी से कमावे), दाता (देने वाला), जिसकी दृष्टि में क्रोद्द हो, तेजस्वी अपनी माता का भक्त, शूर, श्यामवर्ण, सुखी, जार क्रिया (परस्त्री से मैथुन कार्य) स्वभाव वाला होता है और सत्तर वर्ष की आयु होती है। महापुरूष योग समाप्त।
चन्द्रमा के साथ अन्य ग्रहों की युति का फल
    (1) यदि चन्द्रमा और मंगल एक साथ हो तो जातक शूरवीर सत्कुलोचित धर्म पालन करने वाला, धनी और गुणवान होता है। वराहमिहिर के मत से जातक कूट मारणोच्चाटनादि प्रयोग में निष्णात, स्त्री, आसव कुंभ आदि का क्रय-विक्रय (या गिरवी रखना) शील होता है। कूट का अर्थ नीतिपरक भी हो सकता है। माता के लिये यह योग अकल्याणकारी है। सारावली के अनुसार जातक शूर, रण में प्रतापी, मल्ल (युद्ध या कुश्ती करने वाला) मृत्तिका चर्म या धातु के (कूट का अन्य अर्थ) शिल्प में दक्ष होता है कि रक्त रोग के कारण शरीर में वेदना रहती है। पृथुयशस् के अनुसार चन्द्रमा और मंगल लग्न, पंचम नवम, दशम या एकादश में हो तो धनवान् और राजा के समान होता है। यदि यह योग अन्य स्थान में हो तो बन्धुओं के सुख से हीन हो।
    (2) यदि चन्द्रमा और बुध एक साथ हों तो द्दार्मिक, शास्त्रज्ञ और तदनुसार कार्य और व्यवहार करने वाला, अद्भुत गुणों (या अनेक प्रकार के गुणों से) युक्त होता है। वराहमिहिर के अनुसार मीठे वचन बोलने वाला, अर्थनिपुण, सौभाग्यशाली, यशस्वी होता है। सारावली के अनुसार जातक काव्य तथा कथाओं में अति निपुण, द्दनी स्त्री सम्मत (स्त्रियां जिसको पसन्द करें) सुरूप युक्त, हंसमुख (हमारा अनुभव है कि जातक मजाकिया भी होता है) और विशिष्ट गुणों से युक्त होता है।
    (3) यदि चन्द्रमा और बृहस्पति का योग हो तो जातक साद्दुजनावलम्बी और अत्यन्त मतिमान् (मति में वृद्धि, विवेक आदि का समावेश हो जाता है) होता है, वराहमिहिर के अनुसार जातक विक्रान्त, अपने कुल में मुख्य अति स्थिर मति वाला और अत्यन्त धनी होता है। सारावली के अनुसार देवता और ब्राह्मणों की पूजा और सत्कार में रत, शुभशील, दृढ़, मित्रता निभाने वाला, अपने बन्द्दुओं का सम्मान करने वाला और अत्यन्त धनी हो। पृथुयशस् के अनुसार कि जातक, विनीत, स्त्री, पुत्र सहित (अर्थात इनका सुख हो) और धनी होता है किन्तु यह योग लग्न से तृतीय या षष्ठ में हो या चन्द्रमा और बृहस्पति इन दोनों ग्रहों में कोई नीच (यदि यह युति वृश्चिक/मकर में हो) हो तो शुभ नहीं होता है।
    (4) यदि चन्द्रमा और शुक्र का योग हो तो जातक क्रय-विक्रय (खरीद-फरोख्त) में कुशल किन्तु पापात्मा होता है। वराहमिहिर के मत से वस्त्रों के क्रय आदि में कुशल होता है। सारावली के अनुसार क्रय-विक्रय कुशल, अत्यन्त आलसी होता है। पृथुयशस् के अनुसार जातक धनाध्यक्ष होता है और यदि यह योग लग्न से दशम या द्वादश भाव में हो तो विदेश से धन प्राप्ति।
    (5) यदि चन्द्रमा और शनि की युति हो तो जातक कु-स्त्री (जो स्त्री अच्छी न हो) का पुत्र होता है। जातक अपने पिता का दूषक होता है (अपने पिता की निन्दा करता है या अपने आचरण से पिता के कुल को दोष लगाता है) और उसका धन नष्ट हो जाता है, (लेकिन अन्य ग्रहों का योग देखना भी आवश्यक है)। वराहमिहिर के मत से जातक पुनर्भूसुत होता है। जिस स्त्री का द्वितीय बार विवाह हो उसे पुनर्भूसुत कहते हैं। सब जातियों में स्त्री का पुनर्विवाह प्रचलित नहीं है, इस कारण रुद्रभट्ट के अनुसार उसकी माता जारादि से उपभुक्त हो। सारावली के अनुसार जातक (अपने वय से) अधिक वय की स्त्रियों से रमण करता है, हाथी, घोड़ों का पालन करता है या उनको शिक्षा देता है, अब हाथी, घोड़े तो इतने रहे नहीं, इसलिये मोटर, स्कूटर, ट्रक, टैम्पो, इंजन, जहाज, हवाई जहाज, कल कारखानों में मशीन चलाने वाला या उस तत्व से सम्बन्धित व्यवसाय में लगा हुआ यहाँ यह अर्थ लेना होगा)। ऐसा जातक सौशील्यादि गुण रहित, पराजित, धन रहित होता है। दूसरे की मातहती में कार्य करता है। पृथुयशस् के अनुसार जातक दुर्बल देह युक्त अति नीच कार्य करने वाला, मातृद्वेषी (अपनी माता से बैर करने वाला) और बुद्धिहीन होता है किन्तु यदि यह युति लग्न से तृतीय, षष्ठ, दशम या एकादश में हो तो जातक सर्वसम्पन होता है।
केन्द्र में योग
    अब चन्द्रमा यदि किसी ग्रह के साथ केन्द्र में युति करे तो सारावली में जो विशेष फल कहा है, उससे पाठकों को अवगत कराया जाता है।
    (1) यदि चन्द्रमा और मंगल की युति लग्न में हो तो रक्त, अग्नि, और पित्त रोगों से पीड़ित हो। जातक राजा होता है किन्तु उसके स्वभाव में तीक्ष्णता होती है। यदि यह युति लग्न से चतुर्थ में हो तो जातक विकल, क्लेश युक्त, द्रव्यहीन, सुख, सुत धन और बन्धु इनसे हीन होता है। यदि चन्द्र और मंगल सप्तम में हो तो जातक क्षुद्र, दूसरे का धन प्राप्त करने का लोभी, बहुत प्रलाप करने वाला, ईर्ष्या युक्त, मिथ्यावादी हो। दशम में यदि यह युति हो तो हाथी और घोड़ां और सेना से युक्त, सम्पन्न, और विशेष विक्रमशाली होता है।
    (2) यदि चन्द्रमा और बुध लग्न में योग करें तो सुखी, बुद्धिमान् देखने में सुन्दर, अत्यन्त निपुण और वाचाल हो। यदि यह युति चतुर्थ में हो तो जातक सुन्दर, सुवर्ण, अश्व रत्नों का स्वामी हो। उसके बन्धु, मित्र, सुत हों। ऐसा जातक प्रतापी और सुखी हो, यदि यह दोनों ग्रह लग्न से सप्तम में हो तो जातक का ललित शरीर हो। वह सत्कवि (काव्य कला युक्त अथवा बुद्धिमान्) विख्यात् और प्रतापी होता है। ऐसा जातक राजा हो या राजा का विशेष कृपापात्र हो। यदि यह योग दशम में हो जातक मानी, द्दनवान् और अति विख्यात हो। राजा का मंत्री हो किन्तु अपने जीवन के अंत में दुःखी हो, और सम्भव है कि उसके बन्धु उसे छोड़ दें।
    (3) यदि चन्द्रमा और बृहस्पति की युति लग्न में हो तो विस्तृत और उच्च वक्षस्थल युक्त, अच्छे शरीर से युक्त बहुत मित्रों पुत्रों और स्त्रियों वाला (पहिले अनेक पत्नियों का होना या अनेक स्त्रियों का भोग सुख और सौभाग्य का लक्षण माना जाता था), बन्धुओं से युक्त राजा होता है। यदि यह युति लग्न से चतुर्थ में हो तो राजा के समान मंत्री, महावैभवशाली, बहुत शास्त्रों का ज्ञाता निर्मल बुद्धि युक्त, बन्धओं से समन्वित होता है। चन्द्रमा और बृहस्पति की युति यदि सप्तम स्थान में हो तो जातक कला कुशल, व्यापार करने वाला, धनवान् निर्मल, राजा का कृपापात्र या स्वयं राजा अत्यन्त बुद्धिमान् हो। यदि दशम भाव में यह युति हो तो प्रलम्ब बाहु (लम्बे बाहु होना सौभाग्य और अधिकार का सूचक है) ऐसा जातक विद्वान धनी और दानशील होता है और सम्मान तथा कीर्ति पाता है।
    (4) यदि चन्द्रमा और शुक्र की युति लग्न में हो तो सुन्दर शरीर हो, गुरूजन उससे प्रसन्न रहें। सुन्दर वस्त्र, पुष्पमाला, सुगन्धि युक्त पदार्थों का सेवन करे (अर्थात् शौकीन हो)। वेश्या और स्त्रियों और परिवार से सुख हो। नौका या जहाजों (जलयानों) से या इनके माध्यम से लाए गये पदार्थों से धन की प्राप्ति हो। जातक जनप्रिय और भोग सम्पन्न होता है। चन्द्र और शुक्र यदि सप्तम में हो तो जातक बहुत सी युवतियों में रत हो, बहुत द्दन नहीं होता न बहुत पुत्र संतान होते हैं। कन्याएं अधिक होती हैं। राजा के समान (भोगशील) चरित्र वाला और मेधावी हो। यदि यह युति दशम में हो तो जातक के अधीन बहुत से आदमी होते हैं, वह उच्च, सम्मानित अद्दिकारी (हुकूमत करने वाला) विख्यात, मंत्री या राजा, वैभव युक्त होता है। वह क्षमावान् होता है।   
    (5) यदि चन्द्र और शनि की युति लग्न में हो तो जातक दास (मातहती में काम करने वाला) कर्म करने वाला, दुष्ट, क्रोधी, लोभी, हीन छोटे दर्जे का काम, चरित्र या पद में छोटी कक्षा का)। ऐसे जातक अधिक निद्राशील, आलसी और पापी होते हैं। यदि यह दोनों ग्रह चतुर्थ में हो तो जल (जल में उत्पन्न या जल मार्ग से लायी या ले जायी गई वस्तुओं) से नौका, जहाज, मुक्ता, मणि, आदि से आजीविका उपार्जन करता है या खुदाई (खनन-मकान, बावड़ी, कूप, तालाब, बाँध, आदि की खुदाई या तेल, पेट्रोल, खनिज पदार्थों से सम्बन्द्दित खुदाई), पत्रकारिता से द्रव्य कमाता है। ऐसे जातक श्रेष्ठ होते हैं और लोग उनकी प्रशंसा करते हैं। यदि चन्द्र-शनि योग लग्न से सप्तम में हो तो जातक नगर, ग्राम या पुर में महान, राजा से सम्मानित होता है, किन्तु युवति हीन (स्त्री रहित, अर्थात विवाह न हो या पत्नी जीवित न रहे) होता है। यदि चन्द्र शनि युति दशम में हो तो नराधिप (राजा या जन समुदाय पर हुकूमत करने वाला) होता है, अपने शत्रुओं का दमन करने में ऐसे लोग अत्यन्त कुशल होते हैं, विख्यात हो, माता का सुख कम होता है।
मंगल की अन्य ग्रहों से युति
    अब मंगल की अन्य ग्रहों से युति का फल कहते हैं। सर्वप्रथम जातक पारिजात का मत देखिये, तदन्तर अन्य आचार्यों का मत भी दिया जा रहा है। चन्द्र-मंगल युति पीछे लिखी हैं।
    (1) यदि मंगल और बुध की युति हो तो वाग्मी, औषद्दि, शिल्प और शास्त्र में (या शिल्प शास्त्र में) कुशल होता है। वराहमिहिर के मत से मूल (नाल, पत्र, पुष्प, फल, वल्कल आदि), स्नेह (तैल, घृत, वसा, मज्जा-सम्प्रति, ग्रीज, वैसलीन, मोबिल आयल आदि भी) कूट (विविध द्दातुओं से मिश्रित जो वस्तुएं बनायी जाती हैं) आदि का व्यापार करता है और बाहु योद्धा (पहलवान, मल्ल कुश्ती लड़ने वाला) होता है। कूट से कूटनीतिज्ञ, सत्य, असत्य वचनों से अपना काम निकालने वाला जानना चाहिये, क्योंकि बुध वाणी का मुख्य कारक है। सारावली के अनुसार जातक की स्त्री अच्छी न हो, सोने, लोहे मशीनरी का काम करने वाला, दुष्ट स्त्री और विधवा जिसकी रखैल हो, तथा औषध क्रिया में निपुण (वैद्य, हकीम, डाक्टर, कम्पाउण्डर, केमिस्ट, ड्रगिस्ट, सर्जन आदि) होता है।
    (2) यदि मंगल और बृहस्पति का योग हो तो कामी, पूज्य गुणान्वित और गणित शास्त्र का ज्ञानी होता है। वराहमिहिर के अनुसार मंगल सत्व तथा बृहस्पति (ज्ञान) के योग बल से नगर  अध्यक्ष, सभासद, मेयर, पालिका चेयरमैन आदि हो, या राजा (या सरकार) से धन प्राप्त करता है। सारावली के मत से शिल्प, वेद तथा अन्य शास्त्रों में निष्णात् मेधावी, वाग्विशारद (वाणी-शूर), बुद्धिमान् और दीर्घायु, पुत्रवान् और विनीत होता है, किन्तु यदि यह युति लग्न से षष्ठ, अष्टम या द्वादश में हो तो व्यसनी, रोगी और कम धन, आलसी, निष्ठुर वाला हो।
    (3) यदि मंगल और शुक्र एक साथ हो तो धातुओं (लोहा आदि) के कार्य में संलग्न, प्रपंच-रसिक (मायावी, सत्य असत्य का विचार न करने वाला) और कपटी होता है। वराहमिहिर के अनुसार गायों का पालन करने वाला, मल्ल (कुश्ती लड़ने वाला) शीघ्र कार्य-कर्त्ता कुशल, परदारा गमन में रूचिशील, जुआँ, सट्टा, रेस, लॉटरी, मटका आदि में रूपया लगान में अग्रणी होता है। पृथुयशस् के अनुसार जातक, चपल, स्त्री या स्त्रियों के वश में दुष्ट कर्म कर्ता होता है किन्तु यदि यह युति लग्न, चतुर्थ या दशम में हो तो वह अपने कुल की अपेक्षा अधिक उच्च स्थान प्राप्त करता है, या अपने ग्राम-शहर का नेता होता है।
    (4) यदि मंगल और शनि की युति हो तो वादी, वकील, गान, विनोद, हँसी, मजाक, कौतुक का रचने वाला किन्तु प्रायः मन्दमति (बुद्धिमान कम) होता है। वराहमिहिर के अनुसार दुःख से पीड़ित, असत्य वाणी तथा मिथ्या व्यवहार शील तथा निन्दित होता है। सारावली के अनुसार धातु के कार्यों में कुशल, इन्द्रजाल में (जादूगरी) निपुण, धोखा देने वाला चोरी के कार्यों में चतुर, कलह प्रिय, शस्त्र या विष से पीड़ित, विधर्मी (अपने धर्म का पालन न करने वाला) होता है। पृथुयशस् के अनुसार मंगल और शनि की युति हो तो सदैव दुःखी (मानसिक या शारीरिक पीड़ायुक्त-विशेष कर वात और पित्त रोगों से) रहता है। किन्तु यदि यह युति लग्न से तृतीय, षष्ठ, दशम या एकादश भाव में हो तो विख्यात्, राजा के समान होता है और लोग उसे पसन्द करते हैं अर्थात् जन प्रिय होता है।
केन्द्र में योग
    मंगल का अन्य ग्रहों के साथ यदि केन्द्र में योग हो तो सारावली में विशेष फल दिया गया है। अब मंगल का योग बुध, बृहस्पति, शुक्र या शनि के साथ केन्द्र में हो तो सारावली के अनुसार उसका फल नीचे है।
    (1) मंगल और बुध की युति यदि लग्न में हो तो हिंसक (क्रूर, भयानक), अग्नि कर्म में कुशल (फैक्ट्री आदि जहाँ अग्नि का कार्य होता है) धातुओं का कार्य करने वाला, दूत, होता है और जो वस्तु गुप्त रखी जाती है, उनका अधिकारी होता है। यदि यह युति चतुर्थ में हो तो अपने परिवार जनों से निरादृत, तिरस्कृत, बन्धु-बान्धव से रहित या उनका विरोद्दी होता है किन्तु मित्र बहुत होते हैं और धन, अन्न, भोग-विलास, वाहन आदि से सम्पन्न होता है। यदि इन दोनों ग्रहों का योग लग्न से सप्तम में हो तो जातक की प्रथम स्त्री की मृत्यु या विच्छेद हो जाता है, विवाद प्रिय होता है, एक स्थान से दूसरे स्थान में जाता है। स्थायी रूप से एक स्थान में वास नहीं रहता, नीचों की मातहती, में काम करता है। यदि मंगल बुद्द युति दशम में हो तो सेना का अधिपति, शूर, शठ, दुष्ट स्वभाव, अति क्रूर होता है किन्तु द्दैर्य की मात्रा विशेष होती है, राजा का कृपा-पात्र होता है।
    (2) यदि मंगल बृहस्पति की युति लग्न में हो तो मंत्री या अपने विशिष्ट गुणों के कारण प्रधान पद प्राप्त करे। सदैव उत्साही रहे और धार्मिक क्षेत्र में कीर्तियुक्त होता है। यदि इन दोनों ग्रहों की युति लग्न से चतुर्थ स्थान में हो तो जातक गुरू और देवताओं का भक्त होता है, राजा की सेवा करता है। बन्धु और मित्रों से सम्पन्न सुखी जीवन व्यतीत करता है। जिस जातक के सप्तम स्थान में मंगल बृहस्पति हो वह रण में शूरवीर होता है, पर्वत, किला, वन और नदी तट या समुद्र तट उसे प्रिय होते हैं। उसके अच्छे भाई-बन्धु होते हैं किन्तु पत्नी से कष्ट होता है अर्थात् (यह योग सप्तम में मंगल होने के कारण मंगलीक योग कारक है) पत्नी सुख के लिये हानिकारक है। यदि यह युति लग्न से दशम में हो तो विख्यात कीर्तिवाला हो, बहुत धनी और विस्तृत परिवार हो, कार्यों में बहुत दक्ष हो और राजा होता है।
    (3) यदि मंगल और शुक्र की युति लग्न में हो तो जातक कुशील, निष्ठुर, नैतिकताहीन, वेश्यागामी होता है। दीर्घायु भी नहीं होता और स्त्रियों पर या स्त्रियों के लिये धन नष्ट करता है। यदि इन दोनों ग्रहों की युति चतुर्थ भाव में हो तो बन्धु पुत्र, और मित्रों से हीन होता है, मानसिक पीड़ा से कष्ट होता है। यदि इन दोनों ग्रहों का योग लग्न से सप्तम में हो तो स्त्री-लोलुप, कुचरित्रवान् आचारहीन होता है। स्त्रियों के कारण दुःख पाता है। यदि यह युति दशम में हो तो शस्त्र विद्या में निष्णात, बुद्धिमान, विद्या द्दन से युक्त, विख्यात पुरूष या राजमन्त्री होता है।
    (4) यदि मंगल तथा शनि की युति लग्न में हो तो अल्पायु, (किन्तु मंगल या शनि लग्नाधिपति होकर लग्न में हो तो यह अशुभ दोष नहीं होगा यह बात ध्यान में रखना चाहिए), माता से द्वेष करता है, क्षीण भाग्य, संग्रामजयी होता है। यदि यह युति लग्न से चतुर्थ में हो तो पापकर्म में रत होता है। उसके स्वजन उसका त्याग कर देते हैं, मित्र नहीं होते, भोजन और सुख से रहित होता है अर्थात् सुखी नहीं होता। चतुर्थ भाव सुख स्थान है इस कारण क्रूर ग्रह की युति चतुर्थ स्थान में सुख की हानि करती है। यदि सप्तम में यह युति हो तो पत्नी के सुख से रहित, पुत्र के सुख से विरत, अल्प-धनी, रोगी, व्यसनी, कृपण, होता है।
बुध की अन्य ग्रहों से युति
    बुध की सूर्य, चन्द्र या मंगल के साथ युति का फल पहले लिख चुकी हूँ। अब यदि बुध, बृहस्पति, शुक्र या शनि के साथ योग करे तो उसका फल कहते है।
    (1) जातक पारिजात के अनुसार यदि बुध और बृहस्पति एक साथ हो तो जातक वाग्मी, सारपूर्ण वक्ता, स्वरूपवान्, सद्गुणी और विशेष धनी होता है। वराहमिहिर के अनुसार संगीत प्रिय  नृत्य-प्रिय, रंगकर्मी, नाटक, सिनेमा आदि की वृत्ति से धनोपार्जन करने वाला होता है। सारावली के मत से जातक सुखी, विद्वान, मतिमान, गाने बजाने, नृत्य आदि का ज्ञाता होता  है। पृथुयशस् के अनुसार बुध-बृहस्पति की युति से जातक बहरा, नेत्र रोग से पीड़ित, पर विद्वान होता है, यदि यह युति लग्न से छठे, आठवें या बारहवें घर में हो तो सुन्दर, धार्मिक और विख्यात् होता है।
    (2) यदि बुध और शुक्र की युति हो तो शास्त्रज्ञ, गान, विनोद तथा हास्य का रसिक होता है। वराहमिहिर के अनुसार वाग्मी, व्यक्तियों के समूह का पालक होगा। रुद्रभट्ट के अनुसार यदि बुध और शुक्र दोनों बलवान् हो तो भूमि-पति या सेनापति होगा। सारावली के अनुसार जातक अतिशय धनी, नीतिज्ञ, शिल्पवान्, वेदों का विद्वान अच्छे सारपूर्ण और मधुर वचन बोलने वाला, गीतज्ञ, हंसी-मजाक में निपुण होता है।
    (3) यदि बुध और शनि की युति हो तो विद्वान उच्च पदारूढ़, धार्मिक मायावी (मिथ्याचरण का आश्रय लेकर, दूसरों के मन में भ्रम पैदा करने वाला) और शास्त्रीय वृत्ति तथा लोक वृत्ति का उल्लंघन करने वाला होता है। सारावली के अनुसार जातक ऋणवान पाठान्तर से गुणवान् भी, दाम्भिक, प्रपंची, सत्कवि, घूमने का शौकीन, निपुण तथा मोहक वक्ता होता है।
केन्द्र में योग
    (1) बुध-बृहस्पति युति यदि लग्न में हो तो शुभ स्वरूप, सौशील्यादि गुण सम्पन्न, विद्वान, राजाओं से सम्मानित, अनेक भोगों का भोक्ता, वाहन युक्त, सुखी और भोगी होता है। यदि यह युति चतुर्थ स्थान में हो तो राजा का कृपा पात्र, स्त्री मित्रों बन्धुओं से सम्पन्न, सौभाग्यशाली धनी और सुखी होता है। यदि बुध-बृहस्पति योग सप्तम में हो तो अच्छी पत्नी का स्वामी सत्व (साहस, पुरूषार्थ बल) सम्पन्न होता है, शत्रुओं पर विजय प्राप्त हो, धनी, बहुत परिजनों और मित्रों से युक्त और अपने पिता की अपेक्षा बहुत उच्च पद, मान-प्रतिष्ठा आदि में होता है। यदि इन दोनों ग्रहों की युति लग्न से दशम में हो तो राजा या मंत्री हो, उसका बहुत सम्मान हो, हुकूमत करे, धनी और विद्वान हो, उसकी बहुत ख्याति होती है।
    (2) यदि बुध और शुक्र की युति लग्न में हो तो सुन्दर और स्वस्थ हो, ब्राह्मणों और देवताओं का भक्त हो, स्वयं विद्वान और राजा से सम्मानित होता है। ऐसा व्यक्ति विख्यात और प्रशंसनीय होता है। यदि यह युति लग्न से चतुर्थ में हो तो सुन्दर शरीर हो मित्र, पुत्र बन्धओं से युत हो। ऐसा व्यक्ति, कल्याण, सम्पन्न (शुभगुण, सम्पत्ति युक्त) राजा या राजा का मंत्री हो। यह युति सप्तम में होने से बहुत सी सुन्दर स्त्रियों से रति-सुख होता है।
    (3) यदि बुध और शनि की युति लग्न में हो तो मलिन शरीर, पापी, विद्या, धन और वाहन से हीन, अल्पायु और मन्द भाग्य, होता है। चतुर्थ में यह युति होने से, भोजन पेय, तथा बन्धुओं से रहित मूढ़, स्वजनों से तिरस्कृत, पापकर्मी होता है उसके मित्र कम हों। सप्तम में यदि इन दोनों ग्रहों का योग हो तो अति मलिन होता है, न साधु होता है, न परोपकारी अर्थात दुष्ट होता है। मिथ्यावादी होता है, किन्तु इन दोनों ग्रहों का योग यदि लग्न से दशम में हो तो अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करे, ब्राह्मणों, गुरूओं तथा देवताओं में श्रद्धा रखे, स्वजनों तथा मित्रों से युक्त, वाहनों का स्वामी, धन से सम्पन्न होता।
बृहस्पति की अन्य ग्रहों की युति
    अब बृहस्पति की शुक्र तथा शनि से युति का फल कहते हैं। बृहस्पति की अन्य ग्रहों से युति पहले लिख चुकी हूँ।
    (1) जातक पारिजात के अनुसार यदि बृहस्पति और शुक्र की युति हो तो तेजस्वी, राजा का प्रिय, अत्यन्त बुद्धिमान् और शूरवीर होता है। वराहमिहिर के मत से जातक सज्जन, विद्वान् अनेक गुण सम्पन्न, धनी और पत्नी सुख सम्पन्न होता है। सारावली के अनुसार जातक की विशिष्ट (उत्कृष्ट धन कुलादि के कारण या सौन्दर्य सौशील्य विद्यादि गुण सम्पन्न) पत्नी हो, प्रामाणिक बात बोलने वाला और जिसमें विश्वास किया जा सके विशेष रूप से धार्मिक, विद्या से धन उपार्जन करने वाला होता है।
    (2) यदि बृहस्पति और शनि एक साथ हों तो शिल्प शास्त्र में निपुण हो। वराहमिहिर के मत से नापित (नाई) का काम करने वाला, कुम्हार या अन्न दान कर्म तत्पर होता है। रुद्रभट्ट के अनुसार नाई या कुम्हार के काम में कुशल हो (शनि के संयोग से कर्म कुशलता दिखलायी और अन्न दान कर्म कर्तव्य से सद्गुणातिरेक कहा गया है।
    सारावली के अनुसार जातक शूर धन समृद्ध, यशस्वी, श्रेणि, सभा, ग्राम, संघ आदि का प्रद्दान होता है। किसी कार्य विशेष के करने वालों के समुदाय को श्रेणि कहते हैं। पृथुयशस् के अनुसार यदि अनुपचय (लग्न, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, अष्टम, नवम या द्वादश) स्थान में बृहस्पति और शनि का योग हो तो मान और धन से हीन होता है।
केन्द्र में योग
    लग्न, चतुर्थ, सप्तम या दशम, में बृहस्पति शुक्र या बृहस्पति शनि के युति का विशेष फल सारावली में कहा है। वह लिख रही हूँ।
    (1) यदि बृहस्पति और शुक्र की युति लग्न में हो तो राजा के समान भूमि-पति होता है। चतुर्थ में यह युति होने से देव गुरू, द्विजों की अर्चना करता है। अपने कुटुम्बीजनों-आत्मीयों मित्रों से युक्त धन सम्पन्न होता है। उसके अनेक वाहन होते हैं और शत्रुओं को परास्त करता है। यदि बृहस्पति शुक्र का योग सप्तम में हो तो अच्छी पत्नी प्राप्त हो, धन और रत्नों का स्वामी, सुखी और भोगवान होता है, उत्कृष्ट वाहन (सवारी रथ, घोड़े, हाथी, पालकी सम्प्रति मोटर आदि) होते हैं और विख्यात होता है, (यह योग मेरे पिता जी की कुण्डली में स्पष्ट है, मगर नाम अवश्य प्रसिद्ध है, लेकिन धन-मोटर आदि के मामले में उत्कृष्ट तो नहीं कहा जा सकता, हाँ अपने कार्य-व्यापार के सिलसिले में जब वे अपने भक्तों आदि के साथ बाहर जाते हैं, तब तो एक से एक बड़े वाहन (यहाँ तक कि बी.एम.डब्ल्यू, मर्सिडीज, लैंड-क्रूजर, हवाई जहाज आदि तक का सुख काफी कुछ उन्हें मिलता है, हाँलांकि 1 मारूति 1 कॉन्टेसा 1 अम्बेसडर 1 फियेट, 1 रॉयल इन्फील्ड वे रख चुके हैं जिसमें वर्तमान् समय में 1 मारूति 1 कॉन्टेसा ही है, जिसमें कॉन्टेसा तो नगण्य ही मानी जायगी, का सुख भोगते हैं)। यदि यह युति दशम में हो तो बहुत से सेवक हों, अद्दिक सम्पन्न (द्दनी) हों, तथा गुण से समन्वित होता है।
    (2) यदि बृहस्पति-शनि की युति लग्न में हो तो जातक मदयुक्त, आलसी, निष्ठुर, विद्वान, किन्तु खल होता है अल्प सुख प्राप्त करता है। यदि युति चतुर्थ स्थान में हो तो स्वास्थ्य उत्तम रहे, शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर अभ्युदय हो, बन्धु और मित्रों से युक्त हो। लोकप्रिय और सुखी हो। बृहस्पति और शनि सप्तम में हो तो देखने में आकर्षक न हो। ऐसा जातक शूरवीर किन्तु व्यसनी (दुर्व्यसन संलग्न) और दुष्ट होता है। पिता का धन प्राप्त करने का लोभी तथा बुद्धि रहित होता है। यदि यह युति लग्न से दशम में हो, राजा का प्रिय या स्वयं ही राजा हो, सन्तान थोड़ी हों किन्तु गायें और वाहन अनेक हों।
शुक्र और शनि की युति
    जातक पारिजात के अनुसार शुक्र और शनि की यदि युति हो तो अनेक पशुओं का स्वामी और मल्ल (पहलवान) हो। वराहमिहिर के मत से अल्पदृष्टि हो (पास की वस्तु को बारीकी से देखना अल्पदृष्टि है) युवतियों के आश्रय से धन वृद्धि हो। लिपि (लिखना, नक्काशी आदि) पुस्तकों का तथा चित्रों का जानकार होता है। सारावली के मत से लकड़ी की चिराई फड़ाई में कुशल, छुरे (उस्तरे का काम हजामत आपरेशन आदि) चित्र पत्थर के शिल्प कार्य (संगतराशी, मूर्ति निर्माण कार्य) पहलवानी आदि में निपुण होता है।
केन्द्र योग
    यदि शुक्र तथा शनि का योग केन्द्र में हो तो सारावली के अनुसार फल लिखती हूँ। यदि लग्न में इन दोनों ग्रहों की युति हो तो सुन्दर शरीर हो, द्दनवान भोगी और सुख के साधनों से समन्वित होता है। बहुत से भृत्य होते हैं, व्यभिचारी होता है। ऐसा जातक धन भोग आदि होने पर भी शोक से संतप्त होता है। यदि यह युति चतुर्थ में हो तो मित्रों से धन प्राप्ति हो, बन्धुओं से सत्कार, उपकार की प्राप्ति हो। राजा उसका सम्मान करता है। यह दोनों ग्रह यदि लग्न से सप्तम में हो तो जातक को विषय-लाभ, अनेक अच्छी स्त्रियों से सम्पर्क, सुख, धन, कीर्ति और विभूति प्राप्त होती है। यदि यह युति दशम में हो तो जातक सर्व दर्शन विमुक्त, लोक में विख्यात् उच्चपद प्राप्त करता है।
    यह लेख लिखने में मैंने अपने पूज्य पिता जी द्वारा लिखे जा रहे ज्योतिष शास्त्र के महान ग्रन्थ ‘ज्योतिष ज्ञान दर्शन’ और पिता जी के गुरूवत् रहे ब्रह्मलीन त्रिष्कन्ध ज्योतिषाचार्य पं. सीताराम झा जी के द्वारा रचित ग्रन्थ मानसागरी और फलदीपिका तथा अन्य ग्रन्थों का सहारा ले कर लिखा है। आशा है कि इस पंचांग के पाठकों को यह पसन्द आयेगा, इस लेख पर अपने विचार/सुझाव आप astroworldindia.com@gmail.com या astroworldindia@hotmail.com पर भेज सकते हैं..... ऋद्धि विजय त्रिपाठी

कालसर्प योग कारण और निवारण

 ज्योतिष शास्त्र के प्राचीन ग्रन्थों में आचार्यो एवं ऋषियों ने ‘कालसर्पयोग’ के लिए स्पष्टतः कोई निर्णय नही दिया है। विविध विद्वानों से सम्पर्क करके तथा विविध ग्रन्थों व आधुनिका काल की रचनाओें को पढ़ने के बाद इसके शुभाशुभ प्रभावों का फल लिख रहा हूँ।
    राहु केतु के मध्य सूर्य आदि सातों ग्रह स्थित होने से कालसर्पयोग की रचना होती है, जिस जातक के जन्मांग में द्वादश भाव से छठे भाव के बीच यह योग बनता हो, उसे पूर्वार्द्ध का कालसर्पयोग कहते है, पूर्वार्द्ध कालसर्प योग का सम्पूर्ण शुभाशुभ फल जातक को पूर्वार्द्ध जीवन में ही मिलता है। जब छठे भाव से द्वादश भाव तक, अर्थात छठे भाव में राहु और द्वादश भाव में केतु हो, इन्ही दोनों के बीच सूर्यादि सातों ग्रह स्थित हों तो उत्तरार्द्ध कालसर्पयोग बनता है, इसका शुभाशुभ फल जातक के उत्तरार्द्ध जीवन में मिलता है।
    मेष और वृश्चिक लग्न की कुण्डली में
    कालसर्पयोग बनता हो तो उस जातक को न तो नौकरी में सन्तुष्टि मिलती है और न व्यापार में सफलता मिलती है। नौकरी और व्यापार की अवधि में भारी से भारी उतार-चढ़ाव देखना पड़ता है। उत्तरोत्तर संघर्षों के कारण इनका आत्म विश्वास प्रबल नही बन पाता और दिल में यह विश्वास भी नही जम पाता कि अब जीवन भार दाल रोटी की कमाई का एक ठोस रास्ता मैनें प्राप्त कर लिया है। अर्थात असंतोष और बेचैनी बढ़ाने वाले कई कारण स्वयं ही पैदा होते रहते है, जोकि थोड़े-थोड़े समय पर कभी आशान्वित करते है तो कभी निराशा देते है।
    वृष और तुला लग्न की कुण्डली में
    कालसर्पयोग बनता हो तो जातक को हर समय ऐसा महसूस होता रहता है कि उनके हाथ जो रोजागार है वह न जाने कब हाथ से निकल जायेगा। यह विचार भी मन को भय ग्रस्त बनाये रखता है कि द्दीरे-द्दीरे चलती हुई उनकी नाव न जाने कब डूब जायेगी ? ऐसे जातक यह भरोसा नही कर पाते कि वे सफलता के कगार तक आ पहुँचे हैं; केवल दो चार कदम और आगे बढ़ना है। भरोसे मन्द इन भावनाओं के विपरीत परिणाम प्राप्त होने का भय मन में बैठ जाता है, सफलता के निकट पहुँचते ही इनके मन में इस कदर तीव्र अशान्ति और बेचैनी पैदा हो जाती है कि घबराहट में वे उसी स्थान पर लौट आते है- जहाँ से चले थे।
    मिथुन और कन्या लग्न की कुण्डली में
    कालसर्पयोग बनता हो तो वैसे जातक नौकरी जीवी होने पर ऊँचा ओहदा पाने का ख्वाब जरूर देखते हैं, पर सफल नही हो पाते। स्टील-फर्नीचर-लकड़ी आदि का व्यापार करें या कोई अन्य फैक्टरी लगायें तो उसमें ज़िल्लतों का सामना करना पड़ता है, केवल गुजारे भर की आमदनी ही मुश्किलों के साथ कर पातें हैं। खरीद-बिक्री, कमीशन, एजेन्सी, दलाली आदि का कार्य करें तो दस बार का मुनाफा एक ही बार के घाटे में चुकता करना पड़ जाता है।
    कर्क लग्न की कुण्डली में
    कालसर्पयोग बनता हो तो वैसे जातक न अच्छी तरह कमा पाते हैं और न कामयाबी के साथ कोई व्यापार कर सकते हैं। एक साथ कई काम करने की हिम्मत रखते हैं, पर सब जगह अधूरे साबित होते है यदि वे डाक्टर, वकील, ज्योतिषी, ट्यूटर, कलाकार आदि स्वन्तत्र कार्य क्षेत्र के विशेषज्ञ बन जायेगें तो धन खूब कमाते हैं, चारों तरफ शोहरत होती है फिर भी शरीर से स्वस्थ और परिवार से प्रसन्न नही रहते हैं।
    सिंह लग्न की कुण्डली में
    कालसर्पयोग बनता हो तो वैसे जातक आजीविका और परिवार के निमित्त सदैव चिन्तित बनें रहते हैं। अपने स्वतन्त्र उद्योग व्यवसाय में बार-बार  तेजी का लाभ तो जरूर उठा सकते हैं, लेकिन एक ही झटके की गहरी मन्दी में कमर तोड़ नुकसान भी सहना पड़ सकता है। इनकी पूँजी धीमें-धीमें अवश्य बढ़ती है, परन्तु एकाद्द झटके में पूँजी टूट भी जाती है। ऐसे जातक को नौकरी करना पसन्द नही होता।
    मकर और कुम्भ लग्न की कुण्डली में
    कालसर्पयोग बनता हो तो वैसे जातक खनिज, पेट्रोलियम, एसिड, कोयला, मेडिकल या केमिकल लाइन में नौकरी अथवा व्यापार करके अच्छी तरह सफलता को प्राप्त कर लेते है। परन्तु एक दो झटके में सारी कमाई नष्ट भी हो जाती है। शेयर्स में, जूए-मटके में कभी-कभी इन्हे अच्छा लाभ हो सकता है। पुरानी सम्पत्ति या पैतृक सम्पत्ति का सही उपयोग नही कर सकते। स्वकीय सम्पत्ति बनाते हैं, परन्तु न स्वयं तृप्त होते है और न तो परिवार को खुशकर पाते हैं। परदेश-वास या विदेश-वास का अवसर मिलनें पर अपने बहुतेरे मकसदों में कामयाब रहते हैं।
    धनु और मीन लग्न की कुण्डली में
    कालसर्पयोग बनता हो तो वैसे जातक पराधीन कार्य या नौकरी वगैरह में सफल नहीं होते। बाहरी स्त्रियों के संयोग से स्वतन्त्र कार्य क्षेत्र में अपनी जड़ मजबूत कर सकते हैं; परन्तुघर की किसी स्त्री के षड्यन्त्र से उनकी सारी उन्नति अवरूद्ध भी हो जाती है। समाज में बहुचर्चित बनतें हैं, परन्तु संकोची स्वभाव के कारण धन का अभाव बना रहता है, कमाया धन भी खो बैठते है। इनका पारिवारिक जीवन बहुत संघर्षमय होता है। इनके सीने में तमाम दर्द छुपे रहते हैं, पर चेहरा मुस्कुराता रहता है।
         कालसर्पयोग वाली कुण्डली में एक कारक ग्रह उच्च का हो और दूसरा अकारक ग्रह उच्च का हो तो- वैसे जातक हर जगह अपनी धाक जमा लेते है और असम्भव कार्य भी आसानी से कर लेते है। धुन ठान लेने के पक्के और रसीले मिजाज़ के होते है। सूर्य के साथ शनि और चन्द्र के साथ बुध की युति होने पर कालसर्पयोग धनवान, सुविख्यात् और बना देता है।
        1. अनन्त नामक कालसर्पयोग
    तब बनता है जबकि लग्नगत राहु और सप्तमस्थ केतु हो, उन दोनों के बीच सूर्यादि सातो ग्रह स्थित हों। अनन्त नामक कालसर्पयोग में जन्म लेने वाले जातक स्वजनों से बारम्बार धोखा खाते हैं। दिमाग से कम दिल से ज्यादा काम लेते है। जन्म के साथ ही कई तरह के संघर्ष का दौर शुरू हो जाता है, मध्य जीवन काल तक परेशानियाँ चलती रहती हैं। जीवन की आजादी सीमित रहती है। मुख व मस्तिष्क में बीमारी पैदा होने का भय होता है। इस योग वाले जातक किसी महिला के सहयोग से ऊपर उठते हैं और किसी अन्य महिला की संगति से नीचे गिरते भी दिखाई देते हैं।
    2. कुलिक नामक कालसर्पयोग
    तब बनता है जबकि द्वितीयस्थ राहु और अष्टमस्थ केतु हो, उन दोनों के बीच सूर्यादि सातों ग्रह स्थित हों। कुलिक-नामक कालसर्पयोग में जन्म लेने वाले जातक धन-कुटुम्ब-वाणी एवं स्वास्थ की समस्याओं से परेशान रहते है। इनके स्वरूप एवं विकास के साधनों पर दुष्टजनों की बारम्बार बुरी नजर लगती है, वहीं कुदृष्टि विकास मार्ग अवरूद्ध कर देती है। ऐसे लोग कठिनाइयों में भी हँसते हैं, हंसाते है, समस्याओं में भी जीते हैं, जिलाते हैं। इनके लिए यह समझ पाना मुश्किल होता है कि कौन इनका मित्र है और कौन शत्रु। अपने पराक्रम और बुद्धिमानी से वे अच्छी तरक्की कर लेते है।
    3. वासुकी नामक कालसर्पयोग
    तब बनता है जबकि तृतीयस्थ राहु और भाग्यस्थ केतु हो, उन दोनो बीच सूर्यादि सातों ग्रह स्थित हों। वासुकी नामक कालसर्पयोग में जन्म लेने वाले जातक कठोर परिश्रमी, अनुशासन प्रेमी, दूसरों की दुःखद स्थिति में कदम से कदम मिलाकर चलने वाले, अपने मन का दुःख किसी से न कहने वाले सत्य प्रिय व्यक्ति होते है। इनका पारिवारिक जीवन अभिषप्त या सुषुप्त सा बना रहता है। घर वालों का सहयोग प्राप्त नही हो पाता, बाहरी लोगों के सहयोग से बड़े़े कार्य कर डालते है। ऐसे जातक को सम्मान और धन दोनो की प्राप्ति होती है। भाग्य भी अक्सर धोखा देता रहता है।
    4. शंखपाल नामक कालसर्पयोग
    तब बनता है जबकि चतुर्थ राहु और दशम केतु हो, उन दोनों बीच सूर्यादि सातो ग्रह स्थित हो। श¦पाल नामक कालसर्पयोग में जन्म लेने वाले जातक माता पिता से दुःखी रहते है, या इनके द्वारा माता पिता को दुःख पहुँचता है। इनके मित्रगण स्वार्थी होते हैं, चचेरे परिवार से जान जोखिम का भय रहता है। इनके शरीर में विषवृण, कैंसर या कीटाणुजन्य विविध रोगों का भय बना रहता है। ऐसे जातक स्वतन्त्रता एवं स्वावलम्बन को विशेष महत्व देते है, सेक्स की मात्रा अधिक होती है। इनका स्वभाव परोपकारी होता है; किन्तु यश नही मिलता।
    5. पद्म नामक कालसर्पयोग
    तब बनता है जबकि पंचमस्थ राहु और लाभस्थ केतु हो, उन दोनो के बीच सूर्यादि सातों ग्रह स्थित हों। पद्म नामक कालसर्पयोग में जन्म लेने वाले जातक बुद्धिमान्, परिश्रमी, इज्जतदार, स्नेहशील, एवं सतत् उद्यमी होते है। अपने अर्थोपार्जन के साधनों से असंतुष्टि होती रहती है। तीव्रतर इच्छाओं के पोषक होते हैं। दूसरों के लिए इनकी निर्णय क्षमता लाभकारी होती है किन्तु निजी कर्मों के लिए किया गया स्वयं का निर्णय हानिकारक सिद्ध हो जाता है। ज्यादातर बड़े ही लोगों से कभी मित्रता तो कभी शत्रुता हो जाती हैं। सेक्स में उत्तेजना अधिक होती है।
    6. महापद्म नामक कालसर्पयोग
    तब बनता है जबकि षष्ठगत राहु और द्वादश केतु हो, उन दोनो के बीच सूर्यादि सातों ग्रह स्थित हों। महापद्म नामक कालसर्पयोग में जन्म लेने वाले जातक की मानसिक परेशानियाँ बड़ी विलक्षण होती है। कितने लोग इन्हे कलंकित व अपमानित करने का मौका तलाशते रहते हैं। मुसीबतों के क्षण वे घबराते नही हैं बल्कि कठोर साहस से परिस्थितियों का सामना करते है, अन्ततः विजयी बनते है। दूसरों की मदद करने के लिए वे सदैव तैयार रहते है, अपने लिए अक्सर मानसिक तनाव मोल खरीदते रहते है। इज्जत के साथ खाने पहनने की तकलीफ नही होती।
    7. तक्षक नामक कालसर्पयोग
     तब बनता है जबकि सप्तम राहु और लग्नगत केतु हो, उन दोनो को बीच सूर्यादि सातो ग्रह स्थित हो। तक्षक नामक कालसर्पयोग में जन्म लेने वाले जातक धन और स्वाभिमान के सवालों पर संघर्षशील रहते है। इनमें ज्योतिषी, राजनीतिज्ञ, लेखक, पत्रकार आदि बनने की क्षमता होती है। परन्तु उन्हे कहीं भी पूर्णतया की प्राप्ति नही होती। त्याग भावना इतनी प्रबल होती है कि पलक झपकते ही सब कुछ त्यागकर कहीं भी पलायित हो सकते हैं। स्त्री पक्ष से इनका लगाव खूब होता है परन्तु मूड बिगड़ जाने पर स्त्री से भी बगावत कर बैठते है।
    8. कर्कोटक नामक कालसर्पयोग
    तब बनता है जबकि अष्टम राहु और द्वितीयस्थ केतु हो उन दोनों के बीच सूर्यादि सातों ग्रह स्थित हों, कर्कोटक नामक कालसर्पयोग में जन्म लेने वाले जातक की आर्थिक स्थिति गड़बड़ रहती है। इनके जीवन में रहस्मय, रोमांचक और तिलस्मी घटनायें घटित होती रहतीं हैं। जो कुछ होता है वह सब अकस्मात् होता है। चाहे शुभ हो अशुभ हो। प्राण जाय पर वचन न जाय वाली बात सौ फीसदी इनके जीवन में खरी उतरती है। जिस किसी से एकाएक मद्दुर सम्बन्ध बनता है वह सम्बन्ध टिकाऊ नही होता। रोजी-रोटी का अच्छा से अच्छा साधन मिलने पर भी मन भावन नही होता।
     शंखनाद (शंखचूड़) नामक कालसर्पयोग
    तब बनता है जबकि भाग्यस्थ राहु और तृतीयस्थ केतु हो, उन दोनों के बीच सूर्यादि सातों ग्रह स्थित हो। शंखनाद(शंखचूड़) नामक कालसर्पयोग में जन्म लेने वाले जातक अपने ग्रहस्थ जीवन से असन्तुष्ट रहते है। भाग्यपक्ष और कर्मपक्ष उत्तम होते हुए भी किसी को स्त्री कष्ट तो किसी को संतान कष्ट रहता है। जीवन में जाने-अंजाने कुछ गलतियाँ स्वयं हो जाती है, अन्ततः कठिन पश्चाताप ही हाथ लगता है। ऐसे जातक के गुप्त शत्रु बहुत होते है, शत्रुता घर से ही शुरू होती है, वही शत्रुता बाहरी जीवन में फैल जाती है। इनके कार्य और नाम की लोकप्रियता अधिक होती है।
10. पातक  नामक कालसर्पयोग
    तब बनता है जबकि दशमस्थ राहु और चतुर्थ केतु हो, उन दोनों के बीच सूर्यादि सातों ग्रह स्थित हो। पातक नामक कालसर्पयोग में जन्म लेनेवाले जातक वैवाहिक जीवन में अन्य कुटुम्बियों की दखलन्दाजी से अशांत रहते है। पूर्वजों की सम्पत्ति मिल जाय तो कुटुम्बीजनों से क्षतिग्रस्त हो जाती है। यदि स्त्री संतानके साथ घरेलू जीवन ठीक रहा तो कर्मक्षेत्र ठीक नही रहेगा, किन्तु जिन लोगों का कर्मक्षेत्र प्रभावशाली हुआ तो उनका घरेलू जीवन ठीक नही रहेगा। हृदय रोग, मद्दुमेह, श्वासावरोध आदि कष्टकारी राजरोग लगजाने की सम्भावना होती है।
    11. विषाक्त नामक कालसर्पयोग
    तब बनता है जबकि एकादश राहु और पंचम केतु हो, उन दोनों के बीच सूर्यादि सातों ग्रह स्थित हों, विषाक्त नामक कालसर्पयोग में जन्म लेने वाले जातक निर्माणकार्य, नई खोज और प्रगतिशील जीवन के लिए काफी संघर्ष करते है। भावुकता और उदारता के कारण इन्हे आर्थिक क्षति उठानी पड़ती है। विद्या, धन और पुत्र सम्बन्धी सुख की पूर्णतः प्राप्ति नही होती है। इन तीनों में कोई एक ही सुख मिलता है। बाकी दो सुख से वंचित रह जाना पड़ता है। इनका स्वभाव सरल और व्यवसायिक होता है। काका ताऊ चाचा आदि के परिवार से प्रायः दुःखी रहना पड़ता है।
12. शेषनाग नामक कालसर्पयोग
    तब बनता है जबकि व्ययस्थ राहु और षष्ठस्थ केतु हो, उन दोनो के बीच सूर्यादि सातो ग्रह स्थित हो। शेषनाग नामक कालसर्पयोग में जन्म लेने वाले जातक देश-परदेश कहीं भी एक जैसी परिस्थितियों में रहते हुए व्यक्तित्व के विकास, खान-पान और रहन-सहन पर अधिक ध्यान देते है। इनके शत्रु तांत्रिक-यांत्रिक क्रियाओं द्वारा हानि पहुँचाने का षड्यन्त्र करते है। भागीदारी में नुकसान उठाना पड़ता है। देश-विदेश के सम्पर्क से लाभ मिलता है। खूब सोंच समझकर किये गये कामों में अक्सर हानि होती है, किन्तु जो काम अचानक हो जाता है वही विशेष फायदेमन्द होता है। र
    शान्ति-विधान, उपचार-प्रक्रिया-
    1.सिद्धिनवनाग यंत्र और सिद्धिबटुक भैरव यंत्र शुभ मुहूर्त में निर्माण व प्राण प्रतिष्ठा कराकर ताबीज की तरह पहनना शुभ होता है।
    2. अनुष्ठान विधि से श्री बटुक भैरव मन्त्र का सवा लाख जप कराना हितकर होता है।
    3. शिवलिंग पर ताँबे का सर्प बनाकर बहती दरिया में डालना शुभ होता है।
    4. नित्य पार्थिवेश्वर पूजन रूद्राभिषेक सहित पाँच वर्ष तक करने से इस कुयोग की शान्ति होती है।
    5. श्रीकार्तवीर्यार्जुन मन्त्र का 33-33 हजार जप कुल 10 बार कराने से कालसर्पयोग का दुष्प्रभाव दूर होकर राजयोग की तरह भाग्यवर्धक शुभ प्रभाव मिलने लगता है। इसी तरह  अनेकों अकाट्य और प्रत्यक्ष फलदायी उपाय है, सभी उपाय सूक्ष्म तत्व विशेषज्ञों से ही कराना चाहिए।
    6.यदि इसका पूर्ण उपचार करना हो तो आप पंचधातु की मुद्रिका (अंगुठी) बनवाकर पहने अगुंठी दो मुहां सर्पाकार बनवायें और अंगुठी पर सर्प की एक आँख पर गोमेद व एक आँख पर केतु रत्न जड़वायें अंगुठी पूर्णतया आगमशास्त्रीय विधान से धारणकर्ता के नाम व गोत्र से अभिमंत्रित होनी चाहिए तभी लाभदाय होगी। यह कालसर्प योग के दुष्प्रभाव से बचने हेतु सबसे उत्तम उपचार है।           

केमद्रुम योग का मानव जीवन पर प्रभाव

                     केमद्रुम योग का मानव जीवन पर प्रभाव
            ज्योतिष शास्त्र में केमद्रुम योग को काफी महत्व दिया गया है। केमद्रुम योग को सामान्य बोल-चाल की भाषा में दरिद्र योग भी कहा जाता है। ज्योतिष शास्त्र के मतानुसार जब किसी जातक की जन्म कुण्डली में केमद्रुम योग पड़ जाता है तो ऐसा जातक अपने जीवन में आर्थिक क्षेत्र में प्रायः विपन्न ही बना रहता है। इस योग का प्रत्यक्ष प्रभाव जातक के जीवन में देखने को मिलता है। मैं गत 37 वर्षों से विभिन्न लोगों की लगभग 40,000 जन्म पत्रिकाओं में इस विषय पर शोध कर चुका हूँ। यहाँ पर अपने प्रिय पाठक वर्ग के लिये मैं अपना यह शोध लेख प्रकाशित कर रहा हूँ।
    केमद्रुम योग कैसे बनता है- जब जन्मपत्रिका में चन्द्रमा से द्वितीय (2) भाव में और द्वादश (12) भाव में सूर्य-राहु-केतु को छोड़कर अन्य एक भी ग्रह न हो तो यह केमद्रुम योग बनता है। राहु-केतु-सूर्य की गणना इस योग में नहीं होती है। यदि कहीं चन्द्रमा के साथ राहु या केतु हो जावे तो अत्यन्त अशुभकारी परिणाम होते हैं। केमद्रुम योग को ज्योतिषशास्त्र में दरिद्र योग माना गया है, सब कुछ होते हुए भी ऐसा आदमी अभाव-ग्रस्त बना रहता है।
    केमद्रुम योग के लक्षण- जिस प्राणी के जन्मपत्र में चन्द्रमा से केमद्रुम योग बनता है, ऐसा प्राणी आर्थिक दृष्टि से कमजोर रहता है। धन की अत्यधिक कमी से वह शनैः शनैः दुःखी-दरिद्र और चिड़चिड़ा हो जाता है। केमद्रुम योग से प्रभावित होने पर प्राणी व्यर्थ भ्रमण करने वाला, किसी कार्य में सफलता नही प्राप्त कर पाता है। धन का संग्रह नहीं हो पाता है, कारोबार में नाना प्रकार की रूकावटें आती हैं। पुत्र और पत्नी से दुःखी रहता है। भयभीत होता है और कुसंगति का शिकार हो जाता है। धन के लिये अपमानित होना पड़ता है। केमद्रुम योग बनने पर प्राणी को पैतृक सम्पत्ति या तो मिलती नहीं और यदि मिल भी गई तो छिन्न-भिन्न हो जाती है। ज्योतिषशास्त्र मे केमद्रुम योग को अत्यन्त अशुभ-कारक माना गया है।
    केमद्रुम भंग योग- केमद्रुम योग का भंग भी होता है अर्थात जिस प्रकार कई पदार्थो को मिलाकर उससे सुस्वादु भोजन तैयार होता है, यदि चन्द्र अन्य शुभ ग्रहों से सम्बन्ध कर ले तो केमद्रुम योग का दुष्प्रभाव क्षीण हो जाता है, परन्तु अशुभ प्रभाव कुछ न कुछ बना ही रहता है। यदि चन्द्रमा के साथ बुध-गुरू-शुक्र इन तीन शुभ ग्रहों में से एक भी ग्रह हो अथवा इनमें से एक भी ग्रह की दृष्टि यदि चन्द्रमा पर हो तो कुछ शुभ प्रभाव होते है, परन्तु फिर भी इसका प्रभाव तो बना रहता है। निम्न लिखित स्थितियों में केमद्रुम योग भंग होता है।
    1- केमद्रुम योग तब भंग होता है जब चन्द्र से गुरू केन्द्र में हो।
    2-चन्द्रमा वृष राशि या कर्क राशि पर हो और उस पर गुरू की पूर्ण पंचम, नवम या सप्तम दृष्टि हो।
    3-यदि चन्द्रमा केन्द्र में हो और शुक्र भी केन्द्र में हो तथा गुरू की उस पर दृष्टि हो तो केमद्रुम योग भंग होता है।
    4-यदि चन्द्रमा से बुध गुरू शुक्र में से एक भी ग्रह सप्तम भाव में हो, तथा लग्न से ग्यारहवें भाव का स्वामी लग्न से केन्द्र में हो और ऐसे एकादशेश की दृष्टि अपने 11वें भाव पर हो तो तो केमद्रुम योग भंग होकर अखण्ड साम्राज्य योग बनता है, परन्तु ज्योतिषशास्त्र अत्यन्त गुणी/गहन विषय है, इसका दुर्भाग्य है कि ज्योतिष में अनभिज्ञ लोग अपने को ज्योतिषी बताकर समाचारपत्रों या अन्य माध्यमो से भ्रान्तियाँ फैलाए रहते है, हाँ इस पर मैं एक बात स्पष्ट करना चाहूँगा कि ज्योतिषशास्त्रां और धर्मशास्त्रों मे तीन प्रकार का धन लिखा गया है।
    (क)- मौलिक रूप धन यथा ‘स्वर्ण/मकान/जमीन-जायदाद /रूपया’ आदि। (ख)- बलरूप धन यथा ‘खेल/कुश्ती/अंग प्रदर्शन (बॉडी शो आदि) मजदूरी अर्थात् शारीरिक मेहनत से अर्जित’ धन। (ग)- बुद्धि रूप धन यथा ‘पत्रकार, बैरिस्टर, वकील, राजनेता (कुल मिला कर बुद्धि का प्रयोग करके धनार्जन करने वाले) आदि। 
    यह धन क्रमशः एक दूसरे से बली होते है। उदाहरण के लिए- मान लेते है कि किसी आदमी के पास काफी मात्रा में सोना, चाँदी, बँगला, मोटर वाहन, कार, गाय, भैस इत्यादि के रूप में धन हो और किसी कारण वश गृहों के कोप से यदि राजा/सरकार उसका हरण कर ले और उसे देश निकाला दे दे तो धनवान होते हुए भी उसे कष्ट भोगने पड़ जायेगें क्यांकि उसका धन छिन गया। यह हुआ (क) मौलिक रूप धन। (ख) बलरूप धन- यदि उसके शरीर में बल होगा तो परदेश में जाकर शारीरिक श्रम करके जीवन-यापन कर लेगा परन्तु यदि शरीर में बल नहीं है तो सिवाय भीख मागनें या आत्महत्या के अतिरिक्त अन्य रास्ता नहीं रह जाता है। (ग) यदि बुद्धिरूप धन है तो ऐसा जातक अपने बुद्धि-बल के द्वारा पुनः धन प्राप्त करता है। उल्लेखनीय है कि जब कुण्डली में द्वितीय, पंचम, चतुर्थ भाव मजबूत होते है तो जातक बुद्धिरूप द्दन प्राप्त करता है। लग्न, नवम, अष्टम, षष्ठ भाव मजबूत होने से बलरूप धन प्राप्त करता है।
    लग्न, दशम, नवम, एकादश, द्वितीय भाव मजबूत होने से जातक अत्यन्त भाग्यशाली होता है, उपरोक्त जिन भावों में केमद्रुम योग  बनता है, उन भावों की हानि होती है, जैसे किसी का केमद्रुम योग द्वितीय भाव में बनेगा तो उसका धन संचय नहीं हो पायेगा यदि लग्न या अष्टम में बनेगा तो स्वास्थ्य अच्छा नही रहेगा। अब यहाँ पर जिन-जिन भावों में चन्द्र होने से केमद्रुम योग बनता है, उसका फल लिखा जा रहा है।
    1- लग्न (प्रथम भाव) में केमद्रुम योग बनने पर ऐसा जातक दुःखी, रोग-युक्त, निर्धन और प्रायः बीमार रहता है। यदि चंद्रमा मेष, वृष या कर्क राशि में हो तो फल विपरीत ( कुछ शुभ ) होता है।
    2- चन्द्रमा द्वितीय भाव में हो तो ऐसा प्राणी मानसिक रोगी, चिड़चिड़ा, अशान्त, बेवजह क्र्रोध करने वाला, असंतोषी, खराब या अपमान जनक स्थितियों में जीवन-यापन करने वाला, नेत्र कष्ट, पारिवारिक कलह से संतप्त रहता,तथा उसकी पाप-वृत्ति हो जाती है।
    3- चन्द्रमा तृतीय भाव में होता है तो आमदनी पर रोक, भाईयां/भतीजों/पारिवारिक-जनों से कष्ट या उनकी हानि, भाग्यावरोद्द शत्रु से हानि, मानसिक अशांति और वस्त्राभूषण आदि की कमी होगी।
    4- चतुर्थ भाव में चन्द्रमा केमद्रुम योग कारक हो तो मानसिक अशांति और कोख (कुक्षि) में पीड़ा होती है। जल से भय, पारिवारिक कलह और अपमान जनक स्थितियों का सामना करना पड़ता है।
    5- यदि चन्द्रमा पंचम भाव में केमद्रुम योग कारक हो तो प्राणी प्रत्येक कार्य में असफल, अशांति, धन की हानि, कमर में हमेशा कष्ट, जोड़ां के दर्द, गठिया वायु और कफ प्रकोप से कष्ट, गले में खराबी तथा चोरां व जल-जन्तुओं से भय होता है।
    6- यदि छठे भाव में चन्द्र केमद्रुम योग कारक हो तो आमदनी पर रोक, रोग की वृद्धि, शत्रुओं की वृद्धि तथा शत्रुओं से अपमानित होना, यात्रा मे चोट लगना, चचेरे भाइयों से विरोध, ननिहाल पक्ष में कष्ट, विशेष कर पशु/शत्रु से भय होता है।
    7- यदि चन्द्रमा सप्तम भाव में केमद्रुम योग कारक हो तो पत्नी या व्यापार से सम्बन्धित कष्ट या तो पत्नी बीमार रहे या क्रोधी या दरिद्र हो और व्यापार में भी दुःस्तर हानियों का सामना करना पड़ता है।
    8- यदि चन्द्रमा अष्टम भाव में हो तो कब्ज, पेट में अन्न का न पचना, नाभि के आस-पास कष्ट या आपरेशन, सर्प या जहरीले जन्तुओं से भय, कास-श्वास से सम्बन्धित बीमारी तथा घुटनों मे दर्द होता है। ऐसा व्यक्ति पिशाच बाधा या विज्ञान की भाषा में उन्माद/मनोरोग रोग से ग्रस्त होता है।
    9- यदि चन्द्रमा नवम में केमद्रुम योग कारक हो तो नाना प्रकार की राजकीय परेशानियाँ, भाग्यावरोध, राज-दण्ड, लम्बी यात्रा, संतान से कष्ट या झगड़ा, पेट सम्बन्धित पीड़ा एवं व्यापार में नुकसान का सामना करना पड़ता है, परन्तु ऐसा जातक स्त्रियों का प्रिय होता है।
    10- यदि चन्द्रमा दशम भाव में केमद्रुम योग कारक हो तो समस्त कार्यो मे असफलता स्वास्थ्य में कमी नौकरी मे अवनति अथवा कारोबारी क्षेत्र में संघर्ष पूर्ण स्थितियों का सामना करना पड़ता है।
    11- यदि चन्द्रमा ग्यारहवें भाव में केमद्रुम योग कारक होता है तो प्रत्येक प्रकार से धन की हानि, आय के समुचित साधन नहीं बन पाते। आमदनी और लाभ के मामलों में पग-पग पर कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
    12- यदि चन्द्रमा बारहवें भाव में केमद्रुम योग कारक हो तो नेत्र पीड़ा, शारीरिक कष्ट, विशेषकर बायी आँख, गला, बायीं दाढ़ में कष्ट, धन-नाश और नाना प्रकार के दुःखां का सामना करना पड़ता है।
    चूँकि ज्योतिषशास्त्र में चन्द्रमा को कालपुरूष का मन माना गया है अतः अनेकों कुण्डलियों पर शोध करने से मेरा यह निष्कर्ष निकलता है कि जिन कुण्डलियों मे चन्द्रमा केमद्रुम योग कारक होता है, ऐसे जातक को जीवन में जब भी आर्थिक हानि होती है, उसके पीछे उस व्यक्ति की गलत सोच, गलत निर्णय और समय पर अपना कार्य न निपटा पाने/आलस्य के कारण होता है। केमद्रुम से ग्रस्त लोग प्रायः सनकी, जिद्दी, ढीठ, क्रोद्दी तथा चलायमान  चित्त के होते हैं। चंचल मन होने के कारण किसी एक विषय पर टिक कर सोच नहीं सकते तथा अत्यन्त लापरवाह होते है।
    शांति उपचार, उपाय, विधान आदि से केमद्रुम योग की शान्ति करा लेना चाहिए यह परम आवश्यक होता है इसकी शांति कराने के लिए मुहूर्त का विशेष ध्यान रखना होता है, और मुहूर्त के साथ-साथ यह भी विशेष ध्यान रखना चाहिए कि पूर्ण चन्द्र है या क्षीण चन्द्रमा दोनों तरह के चन्द्रमा के अनुसार अलग-अलग उपचार धर्मशास्त्रों में मिलता है।
    पूर्ण चन्द्र वालो को पूर्णिमा को और क्षीण चन्द्र वालों (कृष्ण पक्ष) वालों को शुक्ल पक्ष की एकादशी में शांति उपचार करना चाहिए इसकी शांति के उपायों में प्रमुख तौर पर शुक्लपक्ष के चन्द्रमा में जन्म हो तो गुरू चन्द्रमा यन्त्र और यदि कृष्णपक्ष के चन्द्र में हो तो शुक्र चन्द्र यन्त्र पहनना चाहिए।
    हमारे अनुभव में यह देखने में आया है कि यदि इसका शांति उपाय स्वयं किया जाये या किसी योग्य विद्वान के निर्देशन में किया जाय तो शुभ परिणाम मिलने लगते हैं। चन्द्रमा के वैदिक या आगमशास्त्रीय मंत्रो का विधिवत जप तथा दशांश हवन, दशांश तर्पण, दशांश मार्जन, दशांश कुमारिका भोजन करना श्रेष्ठ होता है। भगवती के मंदिर में या शिवालय में इसकी शांति उपाय आदि करना चाहिए साक्षात् भगवतिस्वरूपा पतित-पावनी भागीरथी गंगा का किनारा सबसे उत्तम है।
    विशेष नोट-केमद्रुम योग की शांति कराने से पूर्व किसी विद्वान ज्योतिषी को अपनी जन्म पत्रिका दिखाकर शांति कराना लाभप्रद होता है। मैने सामान्य जन-मानस के लिये कुछ उपाय खोजे है- एक बात स्पष्ट करना चाहूँगा कि ज्योतिष पूरी तौर पर विज्ञान है और आस्था से इसका गहरा सम्बन्ध है। ग्रहां का कोप उच्च वर्ग, निम्न वर्ग, मघ्यम वर्ग सब पर पड़ता है।

Saturday, January 28, 2017

सन् 2017 में शेयर बाजार को प्रभावित करने वाले विशिष्ट ग्रह योग

जनवरी
    मासारम्भ में ता.03 को बुध अपनी वक्रावस्था मे मूल नक्षत्र के द्वितीय चरण मे प्रवेश करेगा,अतः यह स्थिति बिकवाली का एक अच्छा योग है, जिसके चलते सभी क्षेत्रों की कम्पनियों के शेयर पहले गिरेगें और कुछ समय मे बढ़ना शुरू होगें जेट एयर-लाईन्स, एस्सेल ग्रुप के शेयर्स, वीडियोकॉन, वोल्टास, टिस्को, एपटेक,रिलायंस, बिरला सनलाइफ, टाटा, सत्यम कम्प्यूटर, सिफी आदि के भावों में तेजी आयेगी। बैकिंग से जुड़े शेयर्स भी तेज होगें।   माह का पहला सप्ताह इसी प्रकार रहेगा। दूसरे सप्ताह मे बुध मार्गी होने के कारण शेयर मार्केट मे ठहराव आ जायेगा,अतः मिडकैप क्षेत्र के शेयरों में भी बिकवाली की आशंका है। इसमें एक बारगी मुनाफा कमा लेना निवेशकों के लिये उचित रहेगा, शेयर के भाव मिल जाने पर उन्हे निकाल देना उचित रहेगा। तीसरे सप्ताह मे संक्रान्ति का असर मार्केट मे रहेगा, सूर्यदेव की मकर संक्रान्ति ता.14 को 15 मुहुर्ती महर्घ पड़ रही है अतः आटो मोबाइल, मेटल मार्केट के शेयर्स अमेरिकी और एशियाई शेयर बाजार संवेदी सूचकांक आधारित कम्पनियां सत्यम विप्रो सैमसंग वीडियोकॉन आदि के शेयर्स तेज हो सकते हैं, वही बैंकिग मे आई.सी.सी.आई, एच.डी.एफ.सी., एस.बी.आई., विजया बैंक आदि तेज होगे। स्वदेशी कम्पनियां भी मार्केट मे अपने प्रभाव से शेयर्स को बढ़ाने मे कामयाब रहेगी। मासान्त में धनु के शनि के प्रभाव के चलते निवेशकां को चाहिए कि इन शेयर्स मे विषेश रूचि लें आई.पी.सी.एल, अरविन्द मिल्स, रिलांयस ग्रुप, कैडबरी, नेस्लें, एस.बी.आई., आई.बी.पी., इनफोसिसनेट, एसी.सी.सी., माइक्रोसाफ्ट ,स्मालकैप, मिडकैप, निफ्टी, सैमसंग, एल.जी टिस्को, कोल्ड डिं्रक्स, और मादक पदार्थ बनाने वाली कम्पनीयों से जुडे़ शेयर्स में अच्छी वृद्धि देखने को मिलेगी। 
फरवरी
    माह की 2 ता. में मंगल का उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के तृतीय चरण मे प्रवेश हो जाने के कारण बाजार हल्की मंदी मे रूख मे रहेगा,परन्तु जल्द ही शेयर मार्केट में तेजी लौटने लगेगी, अतः माह के प्रथम सप्ताह मे बाहरी कम्पनियां भारतीय मार्केट में प्रवेश करेंगी जिसके फल स्वरूप क्रूड ऑयल के घटने से, पेट्रोल, डीजल आदि के दाम भी घट सकते हैं। विदेशी कम्पनीयों के शेयर्स इन्फोसीस इन्टेल, माइक्रोसाफ्ट, एवं तकनीकी उपकरण बनाने वाली कम्पनीयों के शेयर्स मे अच्छा उछाल देखने को मिलेगा। ता.12 को सूर्य देव की कुम्भ संक्रान्ति रविवासरीय 30 मुहुर्ती साम्यर्घ पड़ेगी अतः टेली मार्केट से जुड़ी कम्पनीयां, रिलायंस ग्रुप, रैनबैक्सी, रेडीज, टाटा ग्रुप, विप्रो, डाबर, बैजनाथ, बजाज, बिरला सनलाइफ, सत्यम कम्प्यूटर, (सिफी) आदि के भावों में मंदी दिखाकर तेजी आयेगी। माह के तीसरे सप्ताह मे बुध एवं मंगल का मिलाजुला प्रभाव पड़ेगा अतः बाजार को उठते-उठते अकस्मात् गिरायेगा। डाबर, रैनबैक्सी,, सिप्ला, हिन्दुस्तान लीवर, मैक्लीयाड्स कोर आदि शेयरों में मंदी दिखाई देगी। ए.सी.सी, अम्बुजा सीमेंट, आई.पी.सी.एल, आई.बी.पी., इनफोसिस में कुछ उतार-चढ़ाव के मध्य बाजार में तेजी रहेगी। आटो मोबाइल, साफ्टवेयर बनाने वाली कम्पनीयों से सम्बन्धित शेयर्स में अच्छी तेजी देखने को मिलेगी। मासान्त में बुध का कुम्भ मे प्रवेश सौन्दर्य प्रसाधन, खाद्य सामग्री बनाने वाली कम्पनीयां, फनीर्चर, घरेलु उपकरण बनाने वाली कम्पनीयां से जुड़े शेयरों में निवेश करना उपयुक्त। टेलीकॉम मार्केट, स्टील मार्केट, सीमेन्ट मार्केट, रिलायंस ग्रुप के शेयर्स, बिरला सनलाइफ, टाटा, सत्यम कम्प्यूटर, सिफी आदि के शेयर अच्छे उतार चढ़ाव के बाद तेजी ही आयेगी, धैर्य से निवेश करें।
                   मार्च
    मासारम्भ मे ही शुक्र के वक्री हो जाने के कारण शेयर मार्केट  उतार-चढ़ाव लेता हुआ चलेगा यह समय किसी एक निर्णनायक स्थिति का नही है, अतः आपने जो भी निवेश इस बीच किया है उसकी बिकवाली हेतु आपको इन्तजार करना पड़ेगा। बैंकिग से जुड़े हुये शेयर्स खासकर एस.बी.आई., ईलाहाबाद बैंक, देना बैंक, बैंक आफ इण्डीया एक्सीस बैंक, एच.डी.एफ.सी, आई.सी.आई. के शेयर्स में तेजी देखने को मिल सकती है। माह के दूसरे सप्ताह में सूर्य देव की मीन संक्रान्ति 30 मुहुर्ती साम्यर्घ पड़ेगी जिस कारण शेयर बाजार एकदम से बैठकर धीरे-धीरे उपर उठने की चाल बनेगी मार्केट मे मंदी का एक अच्छा दबाव दिखाकर धीरे-धीरे मार्केट बढ़ना शुरू होगा, सोनी, चायनीज मार्केट बजाज आटो, टाटा टी, गोडरेज, वोलटॉस, सैमसंग, नेस्ले, मैकडावल बी.एस.एन.एल.आईडिआ, भारती, सैमसंग, एल जी, जी न्यूज, स्टार ग्रुप, आई टी से जुड़े शेयर्स में एक अच्छी मंदी आकर मार्केट मे धीरे से बढ़त बनना शुरू होगी इस बीच यदि आप चाहे तो निवेश कर सकते है, परन्तु ध्यान रहे कि शेयर्स मे निवेश मंदी का इंतजार करके सही मौके में करना उचित निर्णय रहेगा, नीचे के भाव में शेयर्स लें। माह के तीसरे सप्ताह मे शुक्र के प्रभावी होने से भौतिक वादी वस्तुओं को बनाने वाली कम्पनीयॉ, सीमेन्ट बनाने वाली कम्पनीयॉ, कन्सटॅ्रक्शन का कार्य करने वाली कम्पनीयॉ, आयात एवं निर्यात करने वाली कम्पनीयॉ फैशन व सौन्दर्य प्रसाधन के प्रोडक्ट बनाने वाली कम्पनीयॉ अपने शेयर्स के भाव का उपर ले जाने मे कामयाब रहेगी। मासान्त मे बिरला ए.बी.एन. लायड, रिलायंस ग्रुप, रैनबैक्सी,टाटाग्रुप, सीमेन्ट,स्टील सेक्टर, फाइनेन्स कम्पनियों के शेयर्स, पेट्रोलियम, आयरन, संचार माध्यम, कम्युनिकेशन आदि कम्पनियों से जुड़े शेयर्स में मंदी देखने को मिलेगी।
                अप्रैल
    माह के शुरूआती दौर मे शनि के वक्री हो जाने के कारण मार्केट में खींचातानी हो जायेगी शेयर मार्केट दुतर्फा चलेगा, मार्केट का रूख देखते हुए  खरीदारी करते वक्त एक बात का विशेष खयाल रखें कि मार्केट में भाव नीचे आने पर घबड़ाये नही क्योकि मार्केट अपने भाव को कवर कर लेगा। तारीख 10 को बुध भी इस माह को वक्री हो रहा है, स्थिति में अतः मार्केट में हीरो पेय पदार्थों को बनाने वाली कम्पनीयॉ वाहन बनाने वाली कम्पनीया (टाटा, मारूति, टोयोटा, हुण्डई, महिन्द्रा हॉण्डा,बजाज, सुजुकी, टी.वी.एस., हीरो) टाटा टी, गोडरेज, वोलटॉस, सैमसंग, नेस्ले, मैकडावल आदि शेयर्स में तेजी का रूख दिखेगा। माह के मध्य मे सूर्यदेव की मेष संक्रान्ति 45 मुहुर्ती समर्घ पड़ेगी अतः सेंसेंक्स के सुचकांक मे अकस्मात् मंदी का एक समय आयेगा मार्केट द्दीरे-द्दीरे ऊपर जायेगा। मासान्त मे आयुर्वेदिक दवाई बनाने वाली कम्पनियों, बैंकिग सेक्टर, फिल्म बनाने वाली कम्पनियों, मशीनरी,  इलेक्ट्रानिक सेक्टर से जुड़ी कम्पनियों के शेयर्स बढ़ेगें।                                               मई
    मासारम्भ मे बुध के माग्री होने से मंदी रहेगी परन्तु यह माह विभिन्न ग्रहयोगों से तेजी प्रधान ही रहेगा, अतः मेडिसन टेल्को टिस्को, रिलायन्स ग्रुप, हिन्दुजा, हिन्दुस्तान लीवर लिमिटेड, प्रापर्टी लाइन से जुड़ी कम्पनीयों के शेयर्स, केमिकल्स आदि कम्पनियों के शेयर्स में विशेष उछाल आएगा। माह के दूसरे सप्ताह में सूर्यदेव की वृष संक्रान्ति 30 मुहुर्ती साम्यर्घ पड़ रही है,अतः शेयर मार्केट   नीचे आता दिखाई देगा। परन्तु आप विचलित न हों क्योंकि यह मंदी कुछ ही समय की है, इस बीच आप माइक्रोसाफ्ट, विप्रो, सैमसंग, एल. जी., ईरास, डॉ. रेडीज, जानसन एण्ड जानसन, अमेरिकी एवं एशियाई वित्तीय कम्पनियां, एस्सेल आदि शेयर्स मे  निवेश करें। माह के उत्तरार्ध मे बैंक सेक्टर, फाईनेन्स सेक्टर, व बीमा करने वाली कम्पनीयों के शेयर्स एल आई सी टेल्को हिन्दुस्तान लीवर केमिकल्स टाटा चाय व काफी, सीमेन्ट व इलेक्ट्रानिक्स कम्पनियों के शेयर्स में तेजी आयेगी। तेजड़ियों के लिये यह समय विशेष शुभ है। पुराने शेयर्स की बिकवाली कर सकते हैं।
जून
    मासारम्भ में ही शेयर-बाजार में अच्छी घटा-बढ़ी देखने को मिलेगी, विभिन्न ग्रह योगों के कारण झुकाव मन्दी की ओर ही रहेगा। ता.5 को मंगल, आर्द्रा नक्षत्र के प्रथम चरण में प्रवेश करेगा, अतः जेट एयर-लाईन्स, ईण्डीगों, टाटा ग्रुप से जुड़े शेयर्स  एस्सेल ग्रुप के शेयर्स, वीडियोकॉन, वोल्टास, टिस्को, एपटेक, ए.बी.एन., सिप्ला आदि के शेयर्स मे बाजार में अच्छी मंदी देखने को मिल सकती है। मेडिकल कम्पनियों के शेयरों में मन्दी का बोल-बाला रहेगा। इस समय तेजी के शेयर्स यदि आप लेना चाहते हैं, तो आई.टी से जुड़े शेयर्स व बैकिंग शेयर्स तथा मेडिकल, कम्पनियों के शेयर्स में तेजी का सौदा आप कर सकते है। तारीख 10 को गुरू के माग्री होने से मंदी का रूख दुसरे सप्ताह भी बना रहेगा। तीसरे सप्ताह मे सूर्य देव की मिथुन संक्रान्ति पड़ रही है, अतः बैंक, स्टील, मोटर्स, टेली उद्योग, मशीनरी, काफी, सीमेन्ट, केमिकल्स, कम्प्यूटर आदि कम्पनियों के शेयरों में उछाल आएगा। मंदड़िए कमजोर पड़ जाएंगे, तेजड़िये अच्छा लाभ कमा सकते हैं। औद्यौगिक कम्पनियों के शेयरों की खरीद से आगे अच्छा लाभ मिलेगा। अतः तेजी का सौदा करना लाभप्रद रहेगा। नेट, एच सी एल, ओरियन्टल, हिन्डालको, हिन्दुजा, हिन्दुस्तान, टेस्को, पेन्टाकोर, इन्डेज आदि कम्पनियों के शेयर्स में सुधार संभव है।                                 जुलाई
    मासारम्भ मे मंगल एवं शुक्र के शुभ प्रभाव से यह माह सामान्य लाभकारी है। शेयर बाजार में घटा-बढ़ी का पूर्ण योग है। पेट्रालियम, केमिकल्स, खाद्यान्न सामग्री बनाने वाली कम्पनियों के शेयर्स, आयुर्वेदिक दवाईयां को बनाने वाली कम्पनियों के शेयर्स के भाव बढ़ेंगे। सिगरेट, व अन्य मादक पदार्थ बनाने वाली कम्पनीयों  चाय काफी केमिकल्स धारा, नेरोलक आदि कम्पनियों के शेयर्स गिरेगें। ता.11 को मंगल पुनर्वसु नक्षत्र के चतुर्थ चरण मे कर्क राशि मे प्रवेश करेगा अतः बैंक, एल आई सी, टिल्को, रिलायन्स, विप्रो आई सी आई सी आई वित्तीस संस्थाओं की बिकवाली अधिकांश शेयरों के सूचकांक ऊपर की ओर बढ़ेंगे। खाद्य पदार्थ, कोल्डड्रिंक स्टील सीमेन्ट टेक्सटाइल केमिकल आदि कम्पनियों के शेयर्स में उछाल आयेगा। सूर्यदेव कि कर्क संक्रान्ति ता.16 का पड़ेगी अतः पिछले सप्ताह आयी तेजी का रूख कमजोर पड़ जायेगा। अचानक बाजार में स्थिरता का माहौल बन जाएगा। दूर संचार, स्टेशनरी, मेडिसन, चाय, टाटा गु्रप ,हिन्दुस्तान लीवर, वित्तीय कम्पनियों के शेयर्स में गिरावट दर्ज की जाएगी। जो कि मासान्त तक रहेगी।
                अगस्त
मासारम्भ में ग्रहों के अशुभ प्रभाव से अधिकांश शेयरों में गिरावट आयेगी। इस समय आपको धैर्य से काम लेना होगा।  रिलायन्स, टिस्को केमिकल्स, टाटाग्रुप, बैकिंग, एच.एम.टी., विजया बैंक, के.शेयरों, ए.बी.एन. लायड, गोदरेज, सैमसंग, एन.टी.पी.सी., एम.टी.एन.एल, एस्सेल ग्रुप, जी टी.वी. आदि शेयर्स मे अच्छी मंदी देखने को मिलेगी। खाद्यान्य, रसायन, बैंक, बीमा कम्पनियों के शेयर्स में घटा-बढ़ी का चांस मिलेगा। इसका लाभ तेजड़िये उठा सकते हैं। माह के दूसरे व तीसरे सप्ताह मे बुध के वक्री होने से सेंसेक्स में ज्यादा चाल देखने को तो नहीं मिलेगी पर विशेष कर मशीनरी, काफी, सीमेन्ट, केमिकल्स, बैंक, बीमा पालिसी, स्टील, सुगन्ध, खाद्य पदार्थ मद्रास सीमेन्ट, एम.टी.एन.एल., एन.आई.,आई.टी, रेमण्ड आदि  शेयर्स मे विशेष तेजी का रूख रहेगा। तीसरे सप्ताह मे सूर्यदेव कि सिंह संक्रान्ति पड़ेगी जो मार्केट को ठहरा देगी मार्केट सुस्त पड़ जायेगा अतः ये समय बहुत सोच समझकर निवेश करने वाला है, वाहन बनाने वाली कम्पनीयों के शेयर्स से गिरावट दर्ज की जोयेगी, मशीनरी, टेक्सटाइल, चाय, टेल्को, एल.एम.एल.स्टेशनरी, मेडिसिन, आदि कम्पनियों के शेयर्स में हल्का उछाल आएगा। तेजड़िए कुछ समय बाद ही मार्केट मे हावी होंगे, लेकिन एक बात का विशेष ख्याल रखें, सटोरियों को बहुत सतर्कता से व्यापार करना चाहिए। बाजार की चाल दुतर्फा होगी। चौथे अंतिम सप्ताह में शनि के माग्री होने से अद्दिकांश शेयरों का सूचकांक तेजी को द्दीरे-द्दीरे खत्म करते नजर आयेगें, इसके अतिरिक्त तकनीकी उपकरण बनाने वाली कम्पनीयों कम्प्यूटर, खाद्य पदार्थ बनाने वाली कम्पनीयों व गृहपयोगी वस्तुओं को बनाने वाली कम्पनियों के शेयर्स में गिरावट आयेगी।
                सितम्बर
    मासारम्भ में बुध के माग्री होने से मंदी का रूख बना रहेगा  हिंडाल्को, निफ्टी, मेटल से जुड़े शेयर, रिलायंस इण्डस्ट्रीज आदि बैंकिग में विजया, यू.टी.आई, एच.डी.एफ.सी, पी.एन.बी., डॉ. रेडीज, डाबर, बैजनाथ, आयुर्वेदिक दवाई बनाने वाली कम्पनियों के शेयर्स में अच्छा गिरावट देखने को मिलेगी। तारीख 12 को गुरू तुला राशि मे प्रवेश करेगा अतः मार्केट को सुधारने का कार्य करेगा जिसके फलस्वरूप  आयरन सेक्टर के शेयर्स, प्लास्टिक सेक्टर, मशीनरी, मेटल सेक्टर, रेडीमेड गारमेन्ट्स सेक्टर, टेलीकॉम सेक्टर आदि शेयर्स में तेजी देखने को मिलेगी। तीसरे सप्ताह मे सूर्यदेव की कन्या संक्रान्ति पड़ेगी अतः हिंडाल्को, निफ्टी, मेटल से जुड़े शेयर, रिलायंस इण्डस्ट्रीज आदि बैंकिग में विजया, यू.टी.आई, एच.डी.एफ.सी, पी.एन.बी आदि पर डॉ. रेडीज, डाबर, बैजनाथ, आयुर्वेदिक दवाई बनाने वाली कम्पनियों के शेयर्स में अच्छा उछाल देखने को मिलेगा। एल.एन.टी., डाबर, विप्रो, एल.जी, वीडियोकान, सैमसंग, एल.जी, बी.पी.एल.,भारती आदि कम्पनियों के शेयर्स के भाव कुछ हद तक बढ़ जायेंगे। मासान्त तक तेजी पर उम्मीद से कम शेयर मार्केट मे बनी रहेगी।   
अक्टूबर
    मासारम्भ में ही बाजार का रूख गरम रहेगा। वाहन, उद्योग, मशीनरी, चाय, टेल्को, रिलायन्स एल एम एल, मेडिसिन आदि कम्पनियों के शेयर्स में उछाल आयेगा। ता.3 को  योग तेजी कारक हैं बाजार में मंदड़िए विचलित न हों क्योंकि 5 से 8 तक मंदी का योग भी है। दुसरे सप्ताह मे डाबर, डा. रेबीज, जानसन एण्ड जानसन, आदि कम्पनियों के शेयर्स में उछाल आएगा।  केमिकल्स, औद्योगिक बैंक, स्टील, सुगन्ध, टेली उद्योग मशीनरी काफी सीमेन्ट आदि कम्पनियों के शेयर्स में गिरावट आएगी, अतः पुराने शेयर्स की बिकवाली के लिये यह सप्ताह शुभ नहीं है। ता.17 को सूर्यदेव की तुला संक्रान्ति पड़ रही है अतः शेयर खरीदने का माकूल समय है, आप खरीदारी कर सकते हैं, सूचना प्रौद्योगिकी, बी.एस.एन.एल., एम.टी.एन.एल, विदेशी मुद्रा में गिरावट, व्याज दरें तेज, बैंकिंग, आई.टी, इलेक्ट्रानिक वस्तुवों को बनाने वाली सभी कम्पनीयों के शेयर्स में तेजी का योग बनता है। माह के अंतिम सप्ताह में शेयर्स के भाव धीरे-धीरे कवर करना शुरू कर देंगे, मार्केट में तेजी का प्रभाव दिखने लगेगा, इस बीच विशेष रूप से  टेल्को, टिस्को, रिलायंस, कॉटन, गारमेन्ट्स बनाने वाली कम्पनियों के शेयर्स, रासायनिक पदार्थों में एवं गृहोपयोगी वस्तुओं को बनाने वाली में कम्पनियों के शेयर्स में खास तेजी देखने को मिलेगी।
नवम्बर
    मासारम्भ में औद्योगिक कम्पनियों कें शेयर्स में विशेष गिरावट आयेगी। ता 3 को मंगल हस्त नक्षत्र के द्वितीय चरण में प्रवेश करेगा, टाटा विप्रो, सत्यम, एल आई सी हिन्दुस्तान लीवर टेल्को आदि कम्पनियों के शेयर्स में मन्दी रहेगी। मँदड़िए अच्छा लाभ उठा सकते हैं। ता.4,5,6,8,9 ये तारीखें भी मँदी-कारक हैं। ता.10 से 15 तक शुक्र एवं गुरू का प्रभाव मार्केट मे रहेगा अतः टाटा ग्रुप, संगीत के उपकरण बनाने वाली, कृषि से जुड़े उपकरण बनाने वाली, बड़े वाहनो के टायर  बनाने वाली, मकान बनाने मे इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं को बनाने वाली, कागज, स्टेशनरी, विप्रो, सत्यम्, एल आई सी हिन्दुस्तान लीवर टेल्का आदि के शेयर्स में जबरदस्त तेजी का योग है, ता.16 को सूर्यदेव की वृश्चिक संक्रान्ति पड़ेगी अतः मेडिकल कम्पनियों के शेयर्स, सिप्ला, रैनबैक्सी, कोर, मंदड़िए अगर सम्भलकर न चले तो 15 दिन की कसर दो-चार दिन में पूरी हो जायेगी। यह तेजी का रूख मास के तीसरे सप्ताह तक कायम रहेगा, मास के मध्य में चढ़ी हुई तेजी अच्छा रूख लेकर चलेगी और माह के अन्त में एकदम स्थिर स्थिति में आ जायेगी, अतः पुराने स्टाक को माह के चौथे सप्ताह में निकाल सकते हैं। तेजड़िए अच्छा लाभ उठा सकते हैं। 
दिसम्बर
    मासारम्भ में तारीख 3 को बुध वक्री होने से बाजार में काफी, चाय, बनाने वाली कम्पनी जैसे टाटा टी, नेस्ले, लिप्टन, आदि के शेयर्स बढ़ेगें। दूसरे सप्ताह मे गुरू के प्रभावी होने से भौतिक वादी वस्तुओं को बनाने वाली कम्पनियों, सफाई करने के उपकरण बनाने वाली कम्पनियों  कोल्डड्रिंक सीमेन्ट, स्टील, टेक्सटाइल, कपास, औद्योगिक कम्पनियों में तेजी का रुख रहेगा। मार्केट मे तेजड़िये प्रबल पड़ जाएंगे। माह के तीसरे सप्ताह में मार्केट में 15 को सूर्य देव की धनु की संक्रान्ति पड़ेगी ज्यादा खास तेजी तो नही ला पायेगी पर शेयर बाजार में तेजी का असर पैदा कर देने में कामयाब रहेगी। निवेश करते समय एक बात का ख्याल रखे की किसी भी एक सेक्टर के शेयर्स न खरीदें, अलग-अलग सेक्टर के शेयर्स मे निवेश करें। वर्षान्त मे बजाज, रिलायन्स ग्रुप, विदेशी कम्पनियों के शेयर्स, लेदर का कार्य करने वाली कम्पनियों के शेयर्स टेस्को, एल आई सी आदि में तेजी, मेडिकल्स, कम्पनियों के शेयर्स में मंदी का रूख रहेगा। बिकवाली के दबाव के कारण अनिश्चितता का माहौल बन सकता है। जिससे बाद मे बाजार टूटना प्रारम्भ हो जायेगा। सटोरियों को बेचान और संस्थागत समर्थन न रहने से अनेक शेयरों के भाव काफी धराशायी होंगे। आप वर्ष के अंत मे निवेश इन शेयर्स मे कर सकते है-सीप्ला, रैनबैक्सी, अरविन्द मिल्स, कैडबरी, फेसबुक आई पी ओं, एयरटेल, टाटा टेस्को, सैमसंग, रिलांयस इन्फ्रा, रिलांयस पावर व बैंकिंग सेक्टर मे, एस.बी.आई., एच.डी.एफ.सी., ऐक्सिस।
   नोटः- यद्यपि इस Blog  में प्रत्येक लेख लिखते समय ज्योतिषशास्त्र को आधार मानकर लिखा गया है। फिर भी निवेशकों को एवं व्यापारियों को चाहिये वे बुद्धि से कार्य करें। किसी भी हानि के लिये सम्पादक-लेखक प्रकाशक कतई जिम्मेदार न होंगे। किसी भी विवाद का निपटारा कानपुर न्यायालय के अन्तर्गत मान्य होगा।     डॉ. विजय त्रिपाठी ‘विजय’

Friday, January 27, 2017

पितृ पक्ष का वैज्ञानिक महत्व

 प्रत्येक शरीर में आत्मा तीन रूप में व्याप्त है-1. विज्ञानात्मा, 2. महानात्मा, 3. भूतात्मा। विज्ञानात्मा (उसे कहते हैं जो) गर्भाधान से पहले स्त्री पुरूष में सम्भोग की इच्छा प्रकट करता है। वह रोदसी मण्डल से आता है। रोदसी मण्डल पृथ्वी से 27 हजार मील की दूरी पर स्थित है। महानात्मा चन्द्रलोक से पुरूष के शरीर में 28 अंशात्मक रेतस् बनकर आता है, उसी 28 अंश रेतस् से पुरूष पुत्र पैदा करता है। भूतात्मा माता द्वारा खाये गये अन्न के रस से बने वायु द्वारा गर्भ पिण्ड में प्रवेश करता है। उसे वायु में अहंकार का ज्ञान होता है। उसी को प्रज्ञानात्मा तथा भूतात्मा कहते हैं। यह भूतात्मा पृथ्वी के सिवा अन्य किसी लोक में नहीं जा सकता। मृत प्राणी का महानात्मा स्वजातीय चन्द्रलोक में चला जाता है। चन्द्रलोक में उस महानात्मा से 28 अंश रेतस् माँगा जाता है; क्योंकि चंद्रलोक से 28 अंश लेकर ही वह उत्पन्न हुआ था। इसी 28 अंश रेतस् को पितृऋण कहते हैं। 28 अंश रेतस् के रूप में श्रद्धा नामक मार्ग से भेजे जाने पिण्ड तथा जल आदि के दान को ही श्राद्ध कहते है। इस श्राद्ध नामक मार्ग का सम्बन्ध मध्यान्हकाल में पृथ्वी से होता है। इसीलिए मध्यान्हकाल में श्राद्ध करने का विधान है। पृथ्वी पर कोई भी वस्तु सूर्यमण्डल तथा चन्द्रमण्डल के सम्पर्क से ही बनती है। संसार में सोम सम्बन्धी वस्तु विशेषतः चावल और यव हैं। यव में मेधा की अधिकता है। धान और यव में रेतस् (सोम) का अंश विशेष रूप में रहता है। आश्विन कृृष्णपक्ष (पितृ पक्ष) में यदि चावल तथा यव का पिण्डदान किया जाय तो चन्द्रमंडल को 28 अंश रेतस् पहुँच जाता है। पितर इसी चन्द्रमा के ऊर्ध्व देश में रहते हैं; विदूर्ध्वलोके पितरो वसन्तः स्वाधः सुधादीधित मामनन्ति। (गोलाध्याय)।

        आश्विन कृष्णपक्ष प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक ऊपर की रश्मि तथा रश्मि के साथ पितृप्राण पृथ्वी पर व्याप्त रहता है। श्राद्ध की मूलभूत परिभाषा यह है कि प्रेत और पितर के निमित्त, उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक जो अर्पित किया जाय वही श्राद्ध है। मृत्यु के बाद दशगात्र और षोडशी-सपिण्डन तक मृत व्यक्ति की प्रेत संज्ञा रहती है। सपिण्डन के बाद वह पितरों में सम्मिलित हो जाता है।

        पितृपक्ष भर में जो तर्पण किया जाता है उससे वह पितृप्राण स्वयं आप्यायित होता है। पुत्र या उसके नाम से उसका परिवार जो यव तथा चावल का पिण्ड देता है, उसमें से रेतस् का अंश लेकर वह चन्द्रलोक में अम्भप्राण का ऋण चुका देता है। ठीक आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से वह चक्र ऊपर की ओर होने लगता है।  15 दिन अपना-अपना भाग लेकर शुक्ल प्रतिपदा से उसी रश्मि के साथ रवाना हो जाता है। इसीलिये इसको पितृपक्ष कहते हैं। अन्य दिनों में जो श्राद्ध तथा तर्पण किया जाता है, उसका सम्बन्ध सूर्य की उस सुषुम्ना नाड़ी से रहता है, जिसके द्वारा श्रद्धारश्मि मध्यान्हकाल में पृथ्वी पर आती रहती है और यहाँ से तत्तत् पितर का भाग ले जाती है; परन्तु पितृपक्ष में जितने पितृप्राण चन्द्रमा के ऊर्ध्व देश में रहते है, वे स्वतः चन्द्रपिंड की परिवर्तित स्थिति के कारण पृथ्वी पर व्याप्त रहते हैं। इसी कारण पितृपक्ष में तर्पण और श्राद्ध का इतना अधिक माहात्म्य है।

        धर्मशास्त्र का निर्देश है कि माता-पिता आदि के निमित्त उनके नाम और गोत्र का उच्चारण कर मंत्रों द्वारा जो अन्न आदि अर्पित किया जाता है, वह उनको प्राप्त हो जाता है। उन्हें गन्धर्वलोक प्राप्त होने पर भोग्यरूप में, पशुयोनि में तृणरूप में, सर्पयोनि में वायु रूप में, यक्षयोनि में पेयरूप में, दानवयोनि में मांसरूप में, प्रेतयोनि में रूधिररूप में, और मनुष्यरूप में अन्न आदि के रूप में उपलब्ध होता है।

        जब पितर यह सुनते हैं कि श्राद्धकाल उपस्थित हो गया है तो वह एक दूसरे का स्मरण करते हुए मनोमय रूप से श्राद्धस्थल पर उपस्थित हो जाते हैं और ब्राह्मणों के साथ वायु रूप में भोजन करते हैं। यह भी कहा गया है कि जब सूर्य कन्या राशि में आते हैं तो पितर अपने पुत्रों पौत्रों के यहाँ आते हैं। विशेषतः आश्विन अमावस्या के दिन वह दरवाजे पर आकर बैठ जाते हैं। यदि उस दिन उनका श्राद्ध नहीं किया जाता तो वह शाप देकर लौट जाते हैं। अतः उस दिन पत्र-पुष्प, फल और जल तर्पण से यथाशक्ति उनको तृप्त करना चाहिए। श्राद्ध नहीं होना चाहिए। कन्या गते सवितरि पितरो यान्ति वै सुतान्। अमावस्या दिने प्राप्ते गृहद्वारं समाश्रिताः। श्राद्धाभावे स्वभवनं शापं दत्वा व्रजन्ति ते।।

        मुख्यतः श्राद्ध दो प्रकार के है। पहला एकोद्दिष्ट और दूसरा पार्वण; लेकिन बाद में चार श्राद्धों को मुख्यता दी गई। इनमें पार्वण, एकोद्दिष्ट, वृद्धि और सपिण्डीकरण आते हैं। आजकल यही चार श्राद्ध समाज में प्रचलित हैं। वृद्धिश्राद्धका मतलब नान्दीमुख श्राद्ध है। श्राद्धों की पूरी संख्या बारह है- नित्यं नैमित्तिकं काम्य वृद्धिश्राद्ध सपिंडनम्। पार्वण चेति विज्ञेयं गोष्ठ्यां शुद्धयर्थष्टमम्।। कर्मागं नवमं प्रोक्तं दैविकं दशमं स्मृतमृ। यात्रा स्वेकादर्श प्रोक्तं पुष्टयर्थ द्वादशं स्मृतम्।।

        इनमें नित्यश्राद्ध, तर्पण और पञ्चमहायज्ञ आदि के रूप में, प्रतिदिन किया जाता है। नैमित्तिक श्राद्ध का ही नाम एकोद्दिष्ट है। यह किसी एक व्यक्ति के लिए किया जाता है। मृत्यु के बाद यही श्राद्ध होता है। प्रतिवर्ष मृत्युतिथि पर भी एकोद्दिष्ट ही किया जाता है। काम्य श्राद्ध अभिप्रेतार्थ सिद्धर्य्थ अर्थात् किसी कामना की पूर्ति की इच्छा के लिए किया जाता है। वृद्धिश्राद्ध पुत्र जन्म आदि के अवसर पर किया जाता है। इसी का नाम नान्दी श्राद्ध है। सपिण्डनश्राद्ध मृत्यु के बाद दशगात्र और षोडषी के बाद किया जाता है। इसके बाद मृत व्यक्ति को पितरों के साथ मिलाया जाता है।

        प्रेतश्राद्ध में जो पिण्डदान किया जाता है, उस पिण्ड को पितरों को दिये पिण्ड में मिला दिया जाता है। पार्वण श्राद्ध प्रतिवर्ष आश्विन कृष्णपक्ष में मृत्यु तिथि और अमावस्या के दिन किया जाता है। इसके अतिरिक्त अन्य सभी पर्वों पर भी यह श्राद्ध किया जाता था। गोष्ठी श्राद्ध विद्वानों को सुखी समृद्ध बनाने के उद्देश्य से किया जाता था। इससे पितरों की तृप्ति होना स्वाभाविक है। शुद्धि श्राद्ध शारीरिक मानसिक और अशौचादि अशुद्धि के निवारण के लिए किया जाता है। कर्मा¯ श्राद्ध सोमयाग, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन आदि के अवसर पर किया जाता था। दैविक श्राद्ध देवताओं की प्रसन्नता के लिए किया जाता था। यात्राश्राद्ध यात्रा काल में किया जाता था। पुष्टिश्राद्ध धन-धान्य समृद्धि की इच्छा से किया जाता था।

        हमारे धर्मशास्त्रों में श्राद्ध के सम्बन्ध में इतने विस्तार से विचार किया गया है कि इसके सामने अन्य समस्त धार्मिक कृत्य गौण से लगने लगते हैं। श्राद्ध के छोटे से छोटे कृत्य के संबंध में इतनी सूक्ष्म मीमांसा और समीक्षा की है कि विचारशील व्यक्ति चमत्कृत हो उठते हैं। मनोविज्ञान के अध्येताओं के लिए श्राद्धीय कर्मकाण्ड विवेचन एवं अध्ययन की सामग्री है। शास्त्रकारों ने अपने पांडित्य और मनोविज्ञान का यत्परोनास्ति रूप प्रदर्शित किया है। नया मकान बनवाने पर, नया कूप तैयार करने पर, समृद्धि प्राप्त होने पर, देश में कोई नयी असाधारण घटना होने पर, शत्रुओं पर विजय प्राप्त होने पर, पुत्र जन्म, यज्ञोपवीत, विवाह, कन्या-दान आदि के अवसरों पर, जब परिवार के सब लोग उत्सव मना रहे हों, सबका मन उल्लासित हो, उस समय अपने स्वर्गीय बन्धुओं की स्मृति आना नितांत स्वाभाविक है। यह इच्छा भी उस समय अवश्य जागृत होती है कि यदि इस अवसर पर माता रहतीं, पिता रहते, बड़े भाई रहते, दूसरे आत्मीय रहते तो उनको कितना आनन्द प्राप्त होता। जो हमारे सुख में अपनी अन्तरात्मा से सुखी होते थे, दुःख में दुखी होते थे, उनकी स्मृति मिटाये मिट नहीं सकती। अतः यह इच्छा स्वाभाविक है कि वह अज्ञात लोक के वासी भी हमारे उल्लास में, आनन्दोत्सव में सम्मिलित हों; शरीर से न सही, आत्मा से हमारे साथ रहें; अतः उनके प्रति श्रद्धानत होना और श्रद्धानिवेदित करना स्वाभाविक हो जाता है। उनका शास्त्रीय मंत्रों द्वारा मानसिक आवाहन पूजन ही श्राद्ध है।

        इस मनोवैज्ञानिक सत्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि मन की भावना बड़ी प्रबल होती है। श्रद्धाभिभूत मन के सामने स्वर्गीय आत्मा सजीव और साकार हो उठती है। श्राद्ध में माता-पिता आदि के रूप का ध्यान करना आवश्यक कर्तव्य निर्धारित किया गया है। अनेक श्रद्धालु लोगों का यह अनुभव है कि श्राद्ध के समय माता-पिता, पिता या किसी अन्य स्नेही की झलक दिखाई दी। भगवान् राम ने जब अपने पिता का श्राद्ध किया तो पिण्ड दान के बाद भगवती सीता को दशरथ आदि पितरों का दर्शन कराया था। यह निरी कपोल कल्पना नहीं है। आज का मनोविज्ञान भी श्राद्ध के इस सत्य के निकट पहुँचता जा रहा है।

        श्राद्ध के लिए जिन वस्तुओं की आवश्यकता होती है। उनपर भी शास्त्रों में बहुत विचार किया गया है। कौन वस्तु कैसी हो, कहाँ से ली जाय, कब ली जाय। भोजन सामग्री कैसी हो, किन पात्रों में बनायी जाय, कैसे बनायी जाय। फल, साग, तरकारी आदि में भी कुछ अश्राद्धीय ठहरा दी गयी है। प्रत्येक वस्तु की शुद्धता और स्तर निर्धारित कर दिया है। पुष्प और चन्दन जो निर्धारित है, उन्हीं का उपयोग हो सकता है।

        इसके अलावा श्राद्ध में कैसे ब्राह्मणों को आमन्त्रित किया जाय, किस प्रकार किया जाय, कब किया जाय और निमन्त्रित ब्राह्मण निमन्त्रण के बाद किस तरह का आचरण करें, भोजन किस प्रकार करें, आदि सभी बातें विस्तार पूर्वक बतलायी गयी हैं। ब्राह्मणों को, उत्तम, मध्यम और अधम तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है। निषिद्ध ब्राह्मणों की सूची बड़ी लम्बी है। शास्त्र का कठोर आदेश है कि अन्य किसी धार्मिक कार्य में ब्राह्मणों की परीक्षा न की जाय, पर श्राद्ध में जिन ब्राह्मणों को आमन्त्रित करना हो, उनकी परीक्षा यत्नपूर्वक की जाय और परीक्षा आमन्त्रित करने के पूर्व कर ली जाय, बाद में नहीं - न ब्राह्मणं परीक्षेत देवै कर्मणि धर्मवित्। पित्र्ये कर्मणि तु प्राप्ते परीक्षेत प्रयत्नतः।

        श्राद्ध किसी दूसरे के घर में, दूसरे की भूमि पर कभी न किया जाय। जिस भूमि पर किसी का स्वामित्व न हो, सार्वजनिक हो, ऐसी भूमि पर श्राद्ध किया जा सकता है। शास्त्रीय निर्देश है कि दूसरे के घर में जो श्राद्ध किया जाता है, उसमें श्राद्ध करने वाले पितरों को कुछ नहीं मिलता। गृह-स्वामी के पितर बलात् सब छीन लेते हैं - परकीय गृहे यस्तु स्वात्पितृस्तर्पयेद्यदि। तद्भूमि स्वामिनस्तस्य हरन्ति पितरोबलात्।।

        यह भी कहा गया है कि दूसरे के प्रदेश में यदि श्राद्ध किया जाय तो उस प्रदेश के स्वामी के पितर श्राद्धकर्म का विनाश कर देते हैं- परकीय प्रदेशेषु पितृणां निवषयेत्तुयः। तद्भूमि स्वामि पितृभिः श्राद्धकर्म विहन्यते।।

        इसीलिए तीर्थ में किये गये श्राद्ध से भी आठगुना पुण्यप्रद श्राद्ध अपने घर में करने से होता है-तीर्थादष्टगृणं पुण्यं स्वगृहे ददतः शुभे। यदि किसी विवशता के कारण दूसरे के गृह अथवा भूमि पर श्राद्ध करना ही पड़े तो भूमि का मूल्य अथवा किराया पहले उसके स्वामी को दे दिया जाय।

        मृतक की अन्त्येष्टि और श्राद्ध की जो व्यवस्था इस समय प्रचलित है, वह हमारे वेदों में वर्णित है। गृह्यसूत्रों में पितृयज्ञ अथवा पितृश्राद्ध का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। आश्वलायन गृह्यसूत्र की सप्तमी और अष्टमी कण्डिका में विस्तार पूर्वक श्राद्ध विधि वर्णित की गयी है; वह पठनीय और मननीय है। अन्त्येष्टि विधि का वर्णन भी इसमें उपलब्ध है। चिता प्रज्ज्वलित होने पर ऋग्वेद का यह मन्त्र पढ़ा जाता था - प्रेहि प्रेहि पथिभिः पूर्वेभिः अर्थात् जिस मार्ग से पूर्वज गये हैं, उसी मार्ग से तुम भी जाओ। मूलतः वेदों में भी श्राद्ध और पिण्डदान का उल्लेख किया गया है। श्राद्ध में जो मंत्र पढ़े जाते हैं, उनमें से कुछ ये हैं अत्र पितरो मादमध्वं यथाभागमा वृषायध्वम। इस पितृयज्ञ में पितृगण हृष्ट हो और अंशानुसार अपना-अपना भाग ग्रहण करें। नम वः पितरो रसाय। नमो वः पितरो शोषाय। पितरों को नमस्कार ! बसन्त ऋतु का उदय होने पर समस्त पदार्थ रसवान हों। तुम्हारी कृपा से देश में सुन्दर बसन्त ऋतु प्राप्त हो। पितरों को नमस्कार ! ग्रीष्म ऋतु आने पर सर्व पदार्थ शुष्क हों। देश में ग्रीष्म ऋतु भलीभाँति व्याप्त हो।

        इसी प्रकार छहों ऋतुओं के पूर्णतः सुन्दर, सुखद होने की कामना और प्रार्थना की गयी है। यह भी कहा गया है कि पितरों, तुम लोगों ने हमको गृहस्थ(विवाहित) बना दिया है, अतः हम तुम्हारे लिए दातव्य वस्तु अर्पित कर रहे हैं।

        वेदों के बाद हमारे स्मृतिकारों और धर्माचार्यों ने श्राद्धीय विषयों को बहुत व्यापक बनाया और जीवन के प्रत्येक अंग के साथ सम्बद्ध कर दिया। मनुस्मृति से लेकर आधुनिक निर्णय सिन्धु, धर्मसिन्धु तक की परम्परा यह सिद्ध करती है कि इस विधि में समय समय पर युगानुरूप संशोधन, परिवर्धन होता रहा है। नयी मान्यता, नयी परिभाषा, नयी विवेचना और तदनुरूप नई व्यवस्था बराबर होती रहती है। दुर्भाग्य की बात यह है कि विदेशी आधिपत्य के बाद जब हिन्दु समाज पंगु हो गया, समाज का नियन्त्रण विदेशी पद्धति और विधि-विधान से होने लगा तो युग की आवश्यकता के अनुरूप नयी परिभाषा, व्यवस्था का क्रम भी अवरूद्ध हो गया, फलस्वरूप उपयोगितावादी मानव मन की तुष्टि अपने पुरातन संस्कारों से नहीं हो पा रहीं है और वह संस्कार विहीन होता जा रहा है। जीवित माता पिता, बंधु-बाधव भी आज मात्र उपयोगितावादी की कसौटी पर कसे जा रहे हैं; तब माता-पिता के प्रति आस्था, श्रद्धा और भक्ति की तो बात ही क्या ! इतना ही नहीं, हमारी आस्था स्वयं अपने घर से डिगती जा रही है। देश में व्याप्त समस्त अशान्ति, विक्षोभ, असंतोष, अनैतिकता आदि का मूल कारण यही है। जब हम स्वयं अधोर (शिव) नहीं है तो अधोराः पितरः सन्तु की कामना कैसे कर सकते है।