Monday, January 30, 2017

कालसर्प योग कारण और निवारण

 ज्योतिष शास्त्र के प्राचीन ग्रन्थों में आचार्यो एवं ऋषियों ने ‘कालसर्पयोग’ के लिए स्पष्टतः कोई निर्णय नही दिया है। विविध विद्वानों से सम्पर्क करके तथा विविध ग्रन्थों व आधुनिका काल की रचनाओें को पढ़ने के बाद इसके शुभाशुभ प्रभावों का फल लिख रहा हूँ।
    राहु केतु के मध्य सूर्य आदि सातों ग्रह स्थित होने से कालसर्पयोग की रचना होती है, जिस जातक के जन्मांग में द्वादश भाव से छठे भाव के बीच यह योग बनता हो, उसे पूर्वार्द्ध का कालसर्पयोग कहते है, पूर्वार्द्ध कालसर्प योग का सम्पूर्ण शुभाशुभ फल जातक को पूर्वार्द्ध जीवन में ही मिलता है। जब छठे भाव से द्वादश भाव तक, अर्थात छठे भाव में राहु और द्वादश भाव में केतु हो, इन्ही दोनों के बीच सूर्यादि सातों ग्रह स्थित हों तो उत्तरार्द्ध कालसर्पयोग बनता है, इसका शुभाशुभ फल जातक के उत्तरार्द्ध जीवन में मिलता है।
    मेष और वृश्चिक लग्न की कुण्डली में
    कालसर्पयोग बनता हो तो उस जातक को न तो नौकरी में सन्तुष्टि मिलती है और न व्यापार में सफलता मिलती है। नौकरी और व्यापार की अवधि में भारी से भारी उतार-चढ़ाव देखना पड़ता है। उत्तरोत्तर संघर्षों के कारण इनका आत्म विश्वास प्रबल नही बन पाता और दिल में यह विश्वास भी नही जम पाता कि अब जीवन भार दाल रोटी की कमाई का एक ठोस रास्ता मैनें प्राप्त कर लिया है। अर्थात असंतोष और बेचैनी बढ़ाने वाले कई कारण स्वयं ही पैदा होते रहते है, जोकि थोड़े-थोड़े समय पर कभी आशान्वित करते है तो कभी निराशा देते है।
    वृष और तुला लग्न की कुण्डली में
    कालसर्पयोग बनता हो तो जातक को हर समय ऐसा महसूस होता रहता है कि उनके हाथ जो रोजागार है वह न जाने कब हाथ से निकल जायेगा। यह विचार भी मन को भय ग्रस्त बनाये रखता है कि द्दीरे-द्दीरे चलती हुई उनकी नाव न जाने कब डूब जायेगी ? ऐसे जातक यह भरोसा नही कर पाते कि वे सफलता के कगार तक आ पहुँचे हैं; केवल दो चार कदम और आगे बढ़ना है। भरोसे मन्द इन भावनाओं के विपरीत परिणाम प्राप्त होने का भय मन में बैठ जाता है, सफलता के निकट पहुँचते ही इनके मन में इस कदर तीव्र अशान्ति और बेचैनी पैदा हो जाती है कि घबराहट में वे उसी स्थान पर लौट आते है- जहाँ से चले थे।
    मिथुन और कन्या लग्न की कुण्डली में
    कालसर्पयोग बनता हो तो वैसे जातक नौकरी जीवी होने पर ऊँचा ओहदा पाने का ख्वाब जरूर देखते हैं, पर सफल नही हो पाते। स्टील-फर्नीचर-लकड़ी आदि का व्यापार करें या कोई अन्य फैक्टरी लगायें तो उसमें ज़िल्लतों का सामना करना पड़ता है, केवल गुजारे भर की आमदनी ही मुश्किलों के साथ कर पातें हैं। खरीद-बिक्री, कमीशन, एजेन्सी, दलाली आदि का कार्य करें तो दस बार का मुनाफा एक ही बार के घाटे में चुकता करना पड़ जाता है।
    कर्क लग्न की कुण्डली में
    कालसर्पयोग बनता हो तो वैसे जातक न अच्छी तरह कमा पाते हैं और न कामयाबी के साथ कोई व्यापार कर सकते हैं। एक साथ कई काम करने की हिम्मत रखते हैं, पर सब जगह अधूरे साबित होते है यदि वे डाक्टर, वकील, ज्योतिषी, ट्यूटर, कलाकार आदि स्वन्तत्र कार्य क्षेत्र के विशेषज्ञ बन जायेगें तो धन खूब कमाते हैं, चारों तरफ शोहरत होती है फिर भी शरीर से स्वस्थ और परिवार से प्रसन्न नही रहते हैं।
    सिंह लग्न की कुण्डली में
    कालसर्पयोग बनता हो तो वैसे जातक आजीविका और परिवार के निमित्त सदैव चिन्तित बनें रहते हैं। अपने स्वतन्त्र उद्योग व्यवसाय में बार-बार  तेजी का लाभ तो जरूर उठा सकते हैं, लेकिन एक ही झटके की गहरी मन्दी में कमर तोड़ नुकसान भी सहना पड़ सकता है। इनकी पूँजी धीमें-धीमें अवश्य बढ़ती है, परन्तु एकाद्द झटके में पूँजी टूट भी जाती है। ऐसे जातक को नौकरी करना पसन्द नही होता।
    मकर और कुम्भ लग्न की कुण्डली में
    कालसर्पयोग बनता हो तो वैसे जातक खनिज, पेट्रोलियम, एसिड, कोयला, मेडिकल या केमिकल लाइन में नौकरी अथवा व्यापार करके अच्छी तरह सफलता को प्राप्त कर लेते है। परन्तु एक दो झटके में सारी कमाई नष्ट भी हो जाती है। शेयर्स में, जूए-मटके में कभी-कभी इन्हे अच्छा लाभ हो सकता है। पुरानी सम्पत्ति या पैतृक सम्पत्ति का सही उपयोग नही कर सकते। स्वकीय सम्पत्ति बनाते हैं, परन्तु न स्वयं तृप्त होते है और न तो परिवार को खुशकर पाते हैं। परदेश-वास या विदेश-वास का अवसर मिलनें पर अपने बहुतेरे मकसदों में कामयाब रहते हैं।
    धनु और मीन लग्न की कुण्डली में
    कालसर्पयोग बनता हो तो वैसे जातक पराधीन कार्य या नौकरी वगैरह में सफल नहीं होते। बाहरी स्त्रियों के संयोग से स्वतन्त्र कार्य क्षेत्र में अपनी जड़ मजबूत कर सकते हैं; परन्तुघर की किसी स्त्री के षड्यन्त्र से उनकी सारी उन्नति अवरूद्ध भी हो जाती है। समाज में बहुचर्चित बनतें हैं, परन्तु संकोची स्वभाव के कारण धन का अभाव बना रहता है, कमाया धन भी खो बैठते है। इनका पारिवारिक जीवन बहुत संघर्षमय होता है। इनके सीने में तमाम दर्द छुपे रहते हैं, पर चेहरा मुस्कुराता रहता है।
         कालसर्पयोग वाली कुण्डली में एक कारक ग्रह उच्च का हो और दूसरा अकारक ग्रह उच्च का हो तो- वैसे जातक हर जगह अपनी धाक जमा लेते है और असम्भव कार्य भी आसानी से कर लेते है। धुन ठान लेने के पक्के और रसीले मिजाज़ के होते है। सूर्य के साथ शनि और चन्द्र के साथ बुध की युति होने पर कालसर्पयोग धनवान, सुविख्यात् और बना देता है।
        1. अनन्त नामक कालसर्पयोग
    तब बनता है जबकि लग्नगत राहु और सप्तमस्थ केतु हो, उन दोनों के बीच सूर्यादि सातो ग्रह स्थित हों। अनन्त नामक कालसर्पयोग में जन्म लेने वाले जातक स्वजनों से बारम्बार धोखा खाते हैं। दिमाग से कम दिल से ज्यादा काम लेते है। जन्म के साथ ही कई तरह के संघर्ष का दौर शुरू हो जाता है, मध्य जीवन काल तक परेशानियाँ चलती रहती हैं। जीवन की आजादी सीमित रहती है। मुख व मस्तिष्क में बीमारी पैदा होने का भय होता है। इस योग वाले जातक किसी महिला के सहयोग से ऊपर उठते हैं और किसी अन्य महिला की संगति से नीचे गिरते भी दिखाई देते हैं।
    2. कुलिक नामक कालसर्पयोग
    तब बनता है जबकि द्वितीयस्थ राहु और अष्टमस्थ केतु हो, उन दोनों के बीच सूर्यादि सातों ग्रह स्थित हों। कुलिक-नामक कालसर्पयोग में जन्म लेने वाले जातक धन-कुटुम्ब-वाणी एवं स्वास्थ की समस्याओं से परेशान रहते है। इनके स्वरूप एवं विकास के साधनों पर दुष्टजनों की बारम्बार बुरी नजर लगती है, वहीं कुदृष्टि विकास मार्ग अवरूद्ध कर देती है। ऐसे लोग कठिनाइयों में भी हँसते हैं, हंसाते है, समस्याओं में भी जीते हैं, जिलाते हैं। इनके लिए यह समझ पाना मुश्किल होता है कि कौन इनका मित्र है और कौन शत्रु। अपने पराक्रम और बुद्धिमानी से वे अच्छी तरक्की कर लेते है।
    3. वासुकी नामक कालसर्पयोग
    तब बनता है जबकि तृतीयस्थ राहु और भाग्यस्थ केतु हो, उन दोनो बीच सूर्यादि सातों ग्रह स्थित हों। वासुकी नामक कालसर्पयोग में जन्म लेने वाले जातक कठोर परिश्रमी, अनुशासन प्रेमी, दूसरों की दुःखद स्थिति में कदम से कदम मिलाकर चलने वाले, अपने मन का दुःख किसी से न कहने वाले सत्य प्रिय व्यक्ति होते है। इनका पारिवारिक जीवन अभिषप्त या सुषुप्त सा बना रहता है। घर वालों का सहयोग प्राप्त नही हो पाता, बाहरी लोगों के सहयोग से बड़े़े कार्य कर डालते है। ऐसे जातक को सम्मान और धन दोनो की प्राप्ति होती है। भाग्य भी अक्सर धोखा देता रहता है।
    4. शंखपाल नामक कालसर्पयोग
    तब बनता है जबकि चतुर्थ राहु और दशम केतु हो, उन दोनों बीच सूर्यादि सातो ग्रह स्थित हो। श¦पाल नामक कालसर्पयोग में जन्म लेने वाले जातक माता पिता से दुःखी रहते है, या इनके द्वारा माता पिता को दुःख पहुँचता है। इनके मित्रगण स्वार्थी होते हैं, चचेरे परिवार से जान जोखिम का भय रहता है। इनके शरीर में विषवृण, कैंसर या कीटाणुजन्य विविध रोगों का भय बना रहता है। ऐसे जातक स्वतन्त्रता एवं स्वावलम्बन को विशेष महत्व देते है, सेक्स की मात्रा अधिक होती है। इनका स्वभाव परोपकारी होता है; किन्तु यश नही मिलता।
    5. पद्म नामक कालसर्पयोग
    तब बनता है जबकि पंचमस्थ राहु और लाभस्थ केतु हो, उन दोनो के बीच सूर्यादि सातों ग्रह स्थित हों। पद्म नामक कालसर्पयोग में जन्म लेने वाले जातक बुद्धिमान्, परिश्रमी, इज्जतदार, स्नेहशील, एवं सतत् उद्यमी होते है। अपने अर्थोपार्जन के साधनों से असंतुष्टि होती रहती है। तीव्रतर इच्छाओं के पोषक होते हैं। दूसरों के लिए इनकी निर्णय क्षमता लाभकारी होती है किन्तु निजी कर्मों के लिए किया गया स्वयं का निर्णय हानिकारक सिद्ध हो जाता है। ज्यादातर बड़े ही लोगों से कभी मित्रता तो कभी शत्रुता हो जाती हैं। सेक्स में उत्तेजना अधिक होती है।
    6. महापद्म नामक कालसर्पयोग
    तब बनता है जबकि षष्ठगत राहु और द्वादश केतु हो, उन दोनो के बीच सूर्यादि सातों ग्रह स्थित हों। महापद्म नामक कालसर्पयोग में जन्म लेने वाले जातक की मानसिक परेशानियाँ बड़ी विलक्षण होती है। कितने लोग इन्हे कलंकित व अपमानित करने का मौका तलाशते रहते हैं। मुसीबतों के क्षण वे घबराते नही हैं बल्कि कठोर साहस से परिस्थितियों का सामना करते है, अन्ततः विजयी बनते है। दूसरों की मदद करने के लिए वे सदैव तैयार रहते है, अपने लिए अक्सर मानसिक तनाव मोल खरीदते रहते है। इज्जत के साथ खाने पहनने की तकलीफ नही होती।
    7. तक्षक नामक कालसर्पयोग
     तब बनता है जबकि सप्तम राहु और लग्नगत केतु हो, उन दोनो को बीच सूर्यादि सातो ग्रह स्थित हो। तक्षक नामक कालसर्पयोग में जन्म लेने वाले जातक धन और स्वाभिमान के सवालों पर संघर्षशील रहते है। इनमें ज्योतिषी, राजनीतिज्ञ, लेखक, पत्रकार आदि बनने की क्षमता होती है। परन्तु उन्हे कहीं भी पूर्णतया की प्राप्ति नही होती। त्याग भावना इतनी प्रबल होती है कि पलक झपकते ही सब कुछ त्यागकर कहीं भी पलायित हो सकते हैं। स्त्री पक्ष से इनका लगाव खूब होता है परन्तु मूड बिगड़ जाने पर स्त्री से भी बगावत कर बैठते है।
    8. कर्कोटक नामक कालसर्पयोग
    तब बनता है जबकि अष्टम राहु और द्वितीयस्थ केतु हो उन दोनों के बीच सूर्यादि सातों ग्रह स्थित हों, कर्कोटक नामक कालसर्पयोग में जन्म लेने वाले जातक की आर्थिक स्थिति गड़बड़ रहती है। इनके जीवन में रहस्मय, रोमांचक और तिलस्मी घटनायें घटित होती रहतीं हैं। जो कुछ होता है वह सब अकस्मात् होता है। चाहे शुभ हो अशुभ हो। प्राण जाय पर वचन न जाय वाली बात सौ फीसदी इनके जीवन में खरी उतरती है। जिस किसी से एकाएक मद्दुर सम्बन्ध बनता है वह सम्बन्ध टिकाऊ नही होता। रोजी-रोटी का अच्छा से अच्छा साधन मिलने पर भी मन भावन नही होता।
     शंखनाद (शंखचूड़) नामक कालसर्पयोग
    तब बनता है जबकि भाग्यस्थ राहु और तृतीयस्थ केतु हो, उन दोनों के बीच सूर्यादि सातों ग्रह स्थित हो। शंखनाद(शंखचूड़) नामक कालसर्पयोग में जन्म लेने वाले जातक अपने ग्रहस्थ जीवन से असन्तुष्ट रहते है। भाग्यपक्ष और कर्मपक्ष उत्तम होते हुए भी किसी को स्त्री कष्ट तो किसी को संतान कष्ट रहता है। जीवन में जाने-अंजाने कुछ गलतियाँ स्वयं हो जाती है, अन्ततः कठिन पश्चाताप ही हाथ लगता है। ऐसे जातक के गुप्त शत्रु बहुत होते है, शत्रुता घर से ही शुरू होती है, वही शत्रुता बाहरी जीवन में फैल जाती है। इनके कार्य और नाम की लोकप्रियता अधिक होती है।
10. पातक  नामक कालसर्पयोग
    तब बनता है जबकि दशमस्थ राहु और चतुर्थ केतु हो, उन दोनों के बीच सूर्यादि सातों ग्रह स्थित हो। पातक नामक कालसर्पयोग में जन्म लेनेवाले जातक वैवाहिक जीवन में अन्य कुटुम्बियों की दखलन्दाजी से अशांत रहते है। पूर्वजों की सम्पत्ति मिल जाय तो कुटुम्बीजनों से क्षतिग्रस्त हो जाती है। यदि स्त्री संतानके साथ घरेलू जीवन ठीक रहा तो कर्मक्षेत्र ठीक नही रहेगा, किन्तु जिन लोगों का कर्मक्षेत्र प्रभावशाली हुआ तो उनका घरेलू जीवन ठीक नही रहेगा। हृदय रोग, मद्दुमेह, श्वासावरोध आदि कष्टकारी राजरोग लगजाने की सम्भावना होती है।
    11. विषाक्त नामक कालसर्पयोग
    तब बनता है जबकि एकादश राहु और पंचम केतु हो, उन दोनों के बीच सूर्यादि सातों ग्रह स्थित हों, विषाक्त नामक कालसर्पयोग में जन्म लेने वाले जातक निर्माणकार्य, नई खोज और प्रगतिशील जीवन के लिए काफी संघर्ष करते है। भावुकता और उदारता के कारण इन्हे आर्थिक क्षति उठानी पड़ती है। विद्या, धन और पुत्र सम्बन्धी सुख की पूर्णतः प्राप्ति नही होती है। इन तीनों में कोई एक ही सुख मिलता है। बाकी दो सुख से वंचित रह जाना पड़ता है। इनका स्वभाव सरल और व्यवसायिक होता है। काका ताऊ चाचा आदि के परिवार से प्रायः दुःखी रहना पड़ता है।
12. शेषनाग नामक कालसर्पयोग
    तब बनता है जबकि व्ययस्थ राहु और षष्ठस्थ केतु हो, उन दोनो के बीच सूर्यादि सातो ग्रह स्थित हो। शेषनाग नामक कालसर्पयोग में जन्म लेने वाले जातक देश-परदेश कहीं भी एक जैसी परिस्थितियों में रहते हुए व्यक्तित्व के विकास, खान-पान और रहन-सहन पर अधिक ध्यान देते है। इनके शत्रु तांत्रिक-यांत्रिक क्रियाओं द्वारा हानि पहुँचाने का षड्यन्त्र करते है। भागीदारी में नुकसान उठाना पड़ता है। देश-विदेश के सम्पर्क से लाभ मिलता है। खूब सोंच समझकर किये गये कामों में अक्सर हानि होती है, किन्तु जो काम अचानक हो जाता है वही विशेष फायदेमन्द होता है। र
    शान्ति-विधान, उपचार-प्रक्रिया-
    1.सिद्धिनवनाग यंत्र और सिद्धिबटुक भैरव यंत्र शुभ मुहूर्त में निर्माण व प्राण प्रतिष्ठा कराकर ताबीज की तरह पहनना शुभ होता है।
    2. अनुष्ठान विधि से श्री बटुक भैरव मन्त्र का सवा लाख जप कराना हितकर होता है।
    3. शिवलिंग पर ताँबे का सर्प बनाकर बहती दरिया में डालना शुभ होता है।
    4. नित्य पार्थिवेश्वर पूजन रूद्राभिषेक सहित पाँच वर्ष तक करने से इस कुयोग की शान्ति होती है।
    5. श्रीकार्तवीर्यार्जुन मन्त्र का 33-33 हजार जप कुल 10 बार कराने से कालसर्पयोग का दुष्प्रभाव दूर होकर राजयोग की तरह भाग्यवर्धक शुभ प्रभाव मिलने लगता है। इसी तरह  अनेकों अकाट्य और प्रत्यक्ष फलदायी उपाय है, सभी उपाय सूक्ष्म तत्व विशेषज्ञों से ही कराना चाहिए।
    6.यदि इसका पूर्ण उपचार करना हो तो आप पंचधातु की मुद्रिका (अंगुठी) बनवाकर पहने अगुंठी दो मुहां सर्पाकार बनवायें और अंगुठी पर सर्प की एक आँख पर गोमेद व एक आँख पर केतु रत्न जड़वायें अंगुठी पूर्णतया आगमशास्त्रीय विधान से धारणकर्ता के नाम व गोत्र से अभिमंत्रित होनी चाहिए तभी लाभदाय होगी। यह कालसर्प योग के दुष्प्रभाव से बचने हेतु सबसे उत्तम उपचार है।           

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